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तारीख तय, 161 फीट ऊंचा होगा राममन्दिर, होंगे पांच गुंबद

श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की अयोध्या में शनिवार को हुई पहली बैठक में राम मंदिर निर्माण के लिए 3 या 5 अगस्त को भूमिपूजन कराने पर सहमति बनी। इन तारीखों पर भूमिपूजन कराने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रण भेजने का फैसला हुआ। इस आग्रह पर अंतिम फैसला प्रधानमंत्री कार्यालय करेगा।

वहीं, संतों की ओर से हो रही मंदिर के विस्तार की मांग को भी ट्रस्ट ने गंभीरता से लिया। तय किया गया कि मंदिर का मॉडल तो विहिप का ही रहेगा, मगर भव्यता देने के लिए डिजाइन का विस्तार किया जाएगा। अब मंदिर में तीन की जगह पांच गुंबद होंगे। इससे उसकी लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई बढ़ जाएगी।

राममंदिर के भूमिपूजन के लिए पीएम मोदी से स्वयं ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास ने न्यौता दिया है। उन्होंने कहा है कि भूमिपूजन की तारीख हमने तय करके न्यौता दिया है। अब कोरोना महामारी और देश व समाज की परिस्थिति को देखकर प्रधानमंत्री कार्यालय तारीख तय करेगा और उसी दिन भूमिपूजन होगा। वहां से प्रधानमंत्री के अयोध्या दौरे का कार्यक्रम जारी होने पर उसे सार्वजनिक किया जाएगा।

मंदिर की ऊंचाई अब 161 फीट होगी 
ट्रस्ट के सदस्य कामेश्वर चौपाल ने कहा कि फरवरी में पीएम ने अयोध्या आने की इच्छा जताई थी, लेकिन कोरोना के कारण देरी हुई। अब प्रधानमंत्री को उनकी सुविधानुसार तारीख तय करके अयोध्या आकर मंदिर के गर्भगृह में भूमिपूजन का आग्रह किया गया है। उन्होंने बताया कि मंदिर के डिजाइन में विस्तार से उसकी ऊंचाई 128 फीट से बढ़कर 161 फीट हो जाएगी। गुंबद भी तीन से बढ़ाकर पांच किऐ जाने से मंदिर और बड़ा और भव्य हो जाएगा। प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में सीमित लोगों को बुलाने का भी निर्णय हुआ है।

निर्माण के लिए 10 करोड़ परिवार देंगे दान
ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा कि चंद्रकांत सोमपुरा की टीम ही राममंदिर का निर्माण करेगी। सोमनाथ मंदिर को भी इन्हीं लोगों ने बनाया है। मंदिर निर्माण में पैसे कि कमी नहीं होगी। इसके लिए 10 करोड़ परिवार दान देंगे।

गिराए जाएंगे 12 जर्जर मंदिर
श्री रामजन्मभूमि परिसर स्थित करीब 12 प्राचीन जर्जर मंदिरों को अब गिराया जाएगा। यह निर्णय भी ट्रस्ट की बैठक में लिया गया है। बैठक में शामिल महंत दिनेंद्र दास ने बताया कि परिसर में स्थित पौराणिक जर्जर मंदिर जिनमें 28 वर्षों से पूजा बंद है, उनको गिराने पर सहमति बन गई है। इन प्राचीन मठ-मंदिरों को ध्वस्त तो किया जाएगा, लेकिन इनमें विराजमान गर्भगृह को मंदिर परिसर में ही किसी स्थान पर स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना पहले की भांति प्रारंभ की जाएगी। संत समाज से भी चर्चा कर उनका मत लिया जाएगा।

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