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ईद उल फितर का महत्व और इतिहास

ईद उल फितर इस्लाम मजहब का एक पवित्र त्योहार है। रमजान माह की समाप्ति के बाद चांद को देखकर इस त्योहार को मनाने की परंपरा है। इसलिए दुनिया के अलग-अलग देशों में ईद की तारीख अलग-अलग पड़ती है। कहीं पर आज तो कहीं पर 25 तारीख को ईद मनाई जाएगी। इस्लाम मजहब के इस पर्व को मीठी ईद के नाम से भी जाना जाता है। मीठी ईद इसलिए क्योंकि इस पर्व में खास तरह के मीठे पकवान बनाए जाते हैं। आइए जानते हैं इस त्योहार से जुड़ी प्रमुख परंपराएं, महत्व और इतिहास।

ईद का पर्व खुशियों का त्योहार है। दरअसल इस पर्व से पहले रमजान के पाक महीने में इस्लाम मजहब को मानने वाले लोग पूरे एक माह रोजा रखते हैं। रमजान महीने में मुसलमानों को रोजा रखना अनिवार्य है। यह पर्व त्याग और अपने मजहब के प्रति समर्पण को दर्शाता है। यह बताता है कि इंसानियत के लिए अपनी इच्छाओं का त्याग करना चाहिए, जिससे कि एक बेहतर समाज का निर्माण हो सके।

ईद-उल-फितर में मीठे पकवान (खासतौर पर सेंवईं) बनते हैं। लोग आपस में गले मिलकर अपने गिले-शिकवों को दूर करते हैं। घर आए मेहमानों की विदाई कुछ उपहार देकर की जाती है। इस्लामिक धर्म का यह त्योहार भाईचारे का संदेश देता है। ईद उल फितर के दिन लोग सुबह नए कपड़े पहनकर नमाज अदा करते हुए अमन और चैन की दुआ मांगते हैं।

ईद उल फितर के मौके पर लोग खुदा का शुक्रिया इसलिए करते हैं क्योंकि अल्लाह उन्हें महीने भर उपवास पर रहने की ताकत देते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि रमजान के पवित्र महीने में दान करने से उसका फल दोगुना मिलता है। ऐसे में लोग गरीब और जरूरतमंदों के लिए कुछ रकम दान कर देते हैं।

इस्लाम की तारीख के मुताबिक ईद उल फितर की शुरुआत जंग-ए-बद्र के बाद हुई थी। दरअसल इस जंग में मुसलमानों की फतह हुई थी जिसका नेतृत्व स्वयं पैगंबर मुहम्मद साहब ने किया था। युद्ध फतह के बाद लोगों ने ईद मनाकर अपनी खुशी जाहिर की थी।

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