आयुर्वेद, भारतीय आयुर्विज्ञान है। यह सिर्फ भारत में ही नहीं, पूरे विश्व भर में लोकप्रिय है। शरीर और आत्मा को संतुलित करना ही आयुर्वेद है। आयुर्वेद के अनुसार व्यक्ति एक जीवन शक्ति के साथ पैदा होता है, जिसमें प्रकृति के पांच तत्व शामिल होते हैं – पृथ्वी, वायु, जल, अंतरिक्ष और आग। आयुर्वेद में तीन दोषों का वर्णन है, जिनके असंतुलन को रोग का कारण माना जाता है।
तीन दोष हैं
वात
पित्त
कफ
वात, पित्त और कफ की अनियमितता से ही शरीर में कोई भी दोष होता है, यहां रोग के लिए दोष कहा गया है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए इनका संतुलित होना जरूरी होता है। अस्वास्थ्यकर आहार और और अपर्याप्त व्यायाम के कारण इनका संतुलन बिगड़ने लगता है। सरल शब्दों में कहें तो स्वस्थ रहने का मतलब है संतुलती होकर रहना है। आइए आज जानते हैं इनके बारे में….
वात
वात का गठन अंतरिक्ष और वायु द्वारा किया जाता है। वात शरीर में सभी गतिविधियों को नियंत्रित करता है। यह सांस लेने, हमारी आंखों के झपकने, हमारे दिल की धड़कन और कई शारीरिक कार्यों के लिए जिम्मेदार है। वात को संतुलन में रखने के लिए पर्याप्त आराम और विश्राम की आवश्यकता होती है। अगर किसी को असंतुलित वात है, तो उसे सूखे बालों, शुष्क त्वचा और खांसी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
पित्त
पित्त अग्नि और जल द्वारा गठित होता है। यह भोजन के रासायनिक परिवर्तन, पाचन, अवशोषण, आत्मसात, चयापचय और पोषण को नियंत्रित करके शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है। ये जीवन शक्ति और भूख को बढ़ावा देता है। इस दोष के संतुलित होने वाला व्यक्ति दृढ़ इच्छाशक्ति से परिपूर्ण होता है और उसमें नेतृत्व गुण होते हैं। असंतुलित पित्त दोष क्रोध को जन्म दे सकता है और अल्सर और सूजन जैसी बीमारियों का कारण भी बन सकता है। शरीर की मालिश, गुलाब, पुदीना और लैवेंडर की महक पित्त को संतुलन बनाए रखने का काम करती है।
कफ
कफ का गठन पानी और पृथ्वी द्वारा किया जाता है। यह शरीर के प्रतिरोध को बनाए रखने में मदद करता है। इसके संतुलित होने पर व्यक्ति विचारशील, शांत और स्थिर होते हैं। इस दोष का संतुलन बनाए रखने के लिए कोमल व्यायाम, उत्तेजक गतिविधियां और तरल पदार्थों का अतिरिक्त सेवन करना चाहिए। कफ शरीर के उपचय, शरीर के निर्माण, विकास और मरम्मत और नई कोशिकाओं के निर्माण का काम करता है।