हरियाणा के अंबाला शहर से निकलकर देश की राजनीति और लोगों के दिलों में छा जाने वाली सुषमा स्वराज की पैतृक पारिवारिक पृष्ठभूमि राष्टीय स्वंयसेवक संघ से जुड़ी होने के बावजूद उनको राजनीति में लाने वाले समाजवादी नेता मधु लिमए और जॉर्ज फर्नांडीस थे और राजनीति की डगर पर सुषमा ने पहला कदम जॉर्ज फर्नांडीस की मां की उंगली पकड़कर रखा था।
यही वजह थी कि जिस भाजपा में सुषमा शिखर तक पहुंची, अपने प्रारंभिक राजनीतिक जीवन में वह जनता पार्टी में उन नेताओं के साथ खड़ी थीं जो दोहरी सदस्यता के सवाल को लेकर भाजपा के पूर्ववर्ती घटक जनसंघ के खिलाफ खड़े थे। दिलचस्प यह है कि 1977 में जब सुषमा को 26 साल की उम्र में सबसे कम आयु के मंत्री पद की शपथ राज्य सरकार में दिलाई गई तब तक हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवीलाल उन्हें जानते तक नहीं थे।
यह जानकारी देते हुए जॉर्ज फर्नांडीस के बेहद करीबी सहयोगी रहे समाजवादी आंदोलन के वरिष्ठ नेता विजय नारायण सिंह बताते हैं कि अक्टूबर 1976 में जार्ज फर्नांडीस के खिलाफ चल रहे डाइनामाइट कांड के मुकदमे में उनके वकील के रूप में पैरवी करने के लिए समाजवादी नेता सुरेंद्र मोहन अंबाला से सुषमा के पति स्वराज कौशल को दिल्ली लेकर आए थे। कौशल तब चंडीगढ़ हाईकोर्ट में वकालत करते थे।
जार्ज के बचाव के लिए वकीलों की जो टीम बनाई गई थी, स्वराज कौशल को उसमें शामिल किया गया। स्वराज कौशल और सुषमा की तब नई-नई शादी हुई थी और सरकारी सेवाओं की परीक्षा देने की तैयारी के लिए सुषमा अपने पति के साथ दिल्ली आ गईं। इसके बाद 1977 के लोकसभा चुनावों में जब जार्ज फर्नांडीस बिहार के मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ रहे थे, तब जार्ज की मां के साथ सुषमा उनके प्रचार के लिए वहां गईं और उन्होंने धुआंधार प्रचार किया।
छात्र जीवन में बेहद शानदार डिबेटर रही सुषमा का चुनावी राजनीति से यह पहला साबका था। अपनी भाषण शैली से न सिर्फ जॉर्ज के लिए वोट जुटाए बल्कि जॉर्ज और मधु लिमए जैसे वरिष्ठ नेताओं को बेहद प्रभावित भी किया। विजय नारायण बताते हैं कि जब हरियाणा विधानसभा चुनाव हुए तो जनता पार्टी के संसदीय बोर्ड ने जिसमें जॉर्ज और लिमए दोनों ही थे, उन्हें विधानसभा चुनाव में पार्टी का उम्मीदवार बना दिया।
सुषमा चुनाव जीत गईं और जॉर्ज व लिमए के सरकार कहने पर उन्हें देवीलाल सरकार में मंत्री बनाया गया। सिंह के मुताबिक जब सुषमा ने मंत्री पद की शपथ लेने जा रही थीं तब विधिवत उनका परिचय मुख्यमंत्री देवीलाल से हुआ। उसके कुछ महीनों बाद ही देवीलाल किसी बात को लेकर सुषमा से नाराज हो गए और उन्होंने उनसे मंत्रीपद से इस्तीफा ले लिया। लेकिन जल्दी ही फिर जार्ज और लिमए के कहने पर जनता पार्टी नेतृत्व ने सुषमा को फिर मंत्री बनवा दिया।