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लम्पी स्किन डिजीज के लक्षण, रोकथाम, बचाव एवं उपचार के लिए जारी की गई एडवाईज़री

लम्पी स्किन डिजीज के लक्षण, रोकथाम, बचाव एवं उपचार के लिए जारी की गई एडवाईज़री

जिला स्तर पर स्थापित किया गया कन्ट्रोल रूम 

बहराइच 04 सितम्बर। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने बताया कि जिलाधिकारी मोनिका रानी के निर्देश पर लम्पी स्किन डिजीज से बचाव एवं रोकथाम हेतु राजकीय पशु चिकित्सालय सदर में कन्ट्रोल रूम की स्थापना की गई है। जिसका मोबाइल नम्बर 9076522598 है। कन्ट्रोल रूम रादण्ड-द-क्लाक क्रियाशील रहेगा। सीवीओ ने जिले के पशुपालकों को सुझाव दिया है कि किसी पशु में लोक के लक्षण दिखाई देने पर तत्काल अपने नजदीकी पशु चिकित्सालय अथवा कन्ट्रोल रूम के मोबाइल नम्बर पर सूचना अवश्य दें। उन्होंने बताया कि सभी पशु चिकित्साधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि सूचना प्राप्त होने पर तत्काल पशुओं का स्वास्थ्य परीक्षण किया जाय।

सीवीओ डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने बताया कि लम्पी स्किन डिजीज़ एक विषाणुजनित रोग है। रोग से ग्रसित पशु में तेज बुखार, आंख व नाक से पानी गिरना, पैरों में सूजन, पूरे शरीर में कठोर एवं चपटी गांठ आदि प्रकार के लक्षण पाये जाते हैं। कभी-कभी भी सम्पूर्ण शरीर की धमकी विशेष रूप से सिर, गर्दन, थूथन, धनों, गुदा व अंडकोष या योनिमुख के बीच के भाग पर के उभार बन जाते है। कभी कभी तो पूरा शरीर गांठो से ढक जाता है। यह गांठे (नोड्यूल) नेकोटिक और अल्सरेटिव भी हो सकती हैं. जिससे मक्खियों द्वारा अन्य स्वस्थ पशुओं में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

सीवीओ डॉ. प्रसाद ने बताया कि गम्भीर रूप से प्रभावित जानवरों में नैकोटिव घाव, श्वसन और जठरांत्र में भी विकसित हो जाते है। श्वसन पथ में घाव हो जाने से पशु को सांस लेने में कठिनाई होती है, पशुओं का वजन घट जाता है। शरीर कमजोर हो जाता है एवं अत्याधिक कमजोरी से पशु की मृत्यु भी हो सकती है। गर्भवती पशुओं में गर्भपात भी हो सकता है तथा दुधारू गायों में दुग्ध उत्पादन काफी कम हो जाता है। लम्पी स्किन डिजीज का विषाणु बीमार पशु के लार नासिका स्राव, दूध एवं वीर्य में भारी मात्रा में पाये जाते हैं। बीमार पशु के सीधे सम्पर्क में आने से या रोगग्रस्त पशु के स्राव से संदूषित चारा पानी खाने से स्वस्थ पशु बीमार हो सकता है। रोगग्रस्त पशु का दूध पीने से बछड़ो में यह रोग फैल सकता है। मुख्यतः मच्छरों, मक्खियों, किलनी आदि जैसे रक्तचूसक कीड़ों के काटने से यह रोग बहुत तेजी से फैलता है।

सीवीओ ने बताया कि विषाणुजनित रोग होने के कारण इसका कोई उचित उपचार नही है। कृषकों को सलाह दी जाती है कि लक्षण दिखाई देने पर तत्काल निकट के पशु चिकित्साधिकारी को सूचित करें। बुखार को स्थिति में पशु चिकित्सक की सलाह से ज्वर नाशक यथा पैरासीटामोल एवं एन्टीवायोटिक आदि औषधियों का प्रयोग करें। सूजन एवं चर्म रोग की स्थिति में उचित दवाईयों का लेप लगाए, घावों को मक्खियों से बचाने हेतु नीम की पत्ती, मेंहदी पत्ती, लहसुन, हल्दी पावडर को नारियल तेल में लेप बनाकर प्रयोग करें।

कृषकों को सलाह दी गई है कि लक्षणयुक्त पशु के आवागमन को प्रतिबन्धित करें, दूसरे स्वस्थ पशु से अलग रखें, पशुओं को कीटों से बचाव हेतु बाड़े तथा पशुखलिहान को फिनायल/सोडियम हाइपोक्लोराइट इत्यादि का छिड़काव कर उचित कीटाणु शोधन करें। बीमार पशु की देखभाल करने वाले व्यक्ति को स्वस्थ पशुओं के बाड़े से दूर रखें। सर्वप्रथम स्वस्थ पशुओं को चारा व पानी दें, फिर बीमार पशुओं को दें। बीमार पशुओं को प्रबन्धन करने के पश्चात् हाथ साबुन से अवश्य धोयें।

सीवीओ द्वारा पशुपालकों को यह भी सुझाव दिया गया है कि रोग प्रकोप के समय पशुओं को सामूहिक चराई, पशु मेला एवं प्रदर्शनी में न भेजे तथा बीमार एवं स्वस्थ पशु को एक साथ चारा-पानी न कराएं। रोग प्रकोप के समय क्या न करें के सम्बन्ध में सुझाव दिया गया है कि प्रभावित क्षेत्रों से पशु खरीद कर न लाएं। यदि किसी पशु की मृत्यु होती है तो शव को खुले में न फेंके बल्कि वैज्ञानिक विधि से दफनायें। रोगी पशु के दूध को बछड़े को न पिलाएं।

मण्डल ब्यूरो चीफ:-  सुहेल युसुफ (पत्रकार) द अचीवर टाइम्स मो० 9839804403 जिला- बहराइच (यू०पी०)

रिपोर्ट:- तौहीद अहमद (रिपोर्टर) द अचीवर टाइम्स मो० 7237080713 जिला- बहराइच (यू०पी०)

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