प्रियंका गांधी लगातार जाति और वर्ग की रणनीति पर अपनी चुनावी तैयारियों में व्यस्त हैं। भारतीय जनता पार्टी भी इस पर लगातार नजर बनाए हुए हैं। बीजेपी नेता इसे चुनौती मान रहे हैं।
हाथ में रुद्राक्ष, संगम में डुबकी, मंदिर यात्राएं और अब किसान महापंचायत. बीते कुछ हफ्तों से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा लगातार सुर्खियों में बनी हुईं हैं. माना जा रहा है कि प्रियंका के ये प्रयास उत्तर प्रदेश में पार्टी को फिर से जीवित करने के लिए हैं. उनके इन कामों से एक चीज और साफ हो रही है कि वे अब राज्य में जाति और वर्ग, दोनों को संभालते हुए राजनीति करना चाहती हैं. कांग्रेस जाति और वर्ग को भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व की बात को चुनौती देने की तैयरी कर रहीं हैं।
अब सवाल उठता है कि क्या यह नई रणनीति राज्य में कांग्रेस के दोबारा लौटने में मदद करेगी. 2019 में हुए आमचुनाव में राज्य में कांग्रेस 80 में से एक सीट पर सिमट कर रह गई थी. पहले किसान मुद्दे की बात करते हैं. किसान आंदोलन को पहले से ही किसान का भरपूर समर्थन मिल रहा है. संयोगवश पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों का भी कानूनों के विरोध में खासा योगदान है. बीते कुछ चुनावों को देखें, तो यह क्षेत्र बीजेपी के लिए काफी अच्छा साबित हुआ है।
इन इलाकों में बीजेपी के 2014 चुनाव में मजबूत होने से पहले किसान समुदाय के हिसाब से राजनीति चलती थी। इस समुदाय को 1960 के समय हुई हरित क्रांति के समय समृद्धि और जातीय पहचान मिली. वहीं इमरजेंसी के बाद क्षेत्र में राजनीति दलित हिंदुओं के आसपास आ गई. एकमात्र मजबूत राष्ट्रीय पार्टी होने के चलते कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा, तो वहीं बीजेपी को भी 80 और 90 के दशक में राम मंदिर मुहिम के बावजूद जड़ें मजबूत करने में मुश्किलें उठानी पड़ीं।
इसके बाद 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों के बाद क्षेत्र की राजनीति में नया मोड़ आया. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी के उभरने के साथ दंगों से हुआ विभाजन पिछड़े दलित हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच चुनावी समझ को खत्म करने के लिए काफी था. 2014 से ही, 2017 और 2019 में धार्मिक एकीकरण ने बीजेपी के लिए बढ़िया काम किया, लेकिन इसे किसान आंदोलन की वजह से काफी चोट पहुंच रही है।
साफ तौर पर यह बीजेपी के लिए एक सिग्नल और विपक्षी दलों के लिए उम्मीद की एक किरण है. यही कारण है कि विपक्षी पार्टियां किसानों के समर्थन में आगे आईं हैं. जाट आधारित राष्ट्रीय लोक दल क्षेत्र में सक्रिय है और इसी बीच कांग्रेस भी अपनी पूरी ताकत के साथ मैदान में उतर गई है. नई रणनीति की एक झलक तब देखने को मिली जब प्रियंका समेत कांग्रेस के बड़े नेता गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा में मारे गए सिख किसान की याद में आयोजित कार्यक्रम में रामपुर पहुंचे थे. इसके बाद भी वे किसानों से जुड़े कई कार्यक्रमों का हिस्सा बनीं।
कांग्रेस शायद अपने नेता कि उदार धार्मिक छवि पेश करने में लगी हुई है. यही कारण है कि संगम स्नान, मंदिर यात्रा के अलावा प्रियंका ने सूफी समाधी पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी. उनके इन कामों को राजनीति में बड़े स्तर पर देखा जा रहा है. वहीं, बीजेपी भी इससे काफी चिंतित है और लगातार मामलों पर नजर बनाए हुए है. साथ ही उन्होंने संगम स्नान के दौरान जाति के मुद्दे पर भी पकड़ बनाने की कोशिश की. उन्होंने ट्वीट के जरिए नाविक संजय निषाद का धन्यवाद किया. उनके इस ट्वीट ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा था।
कांग्रेस का मानना है कि वे पहले की तुलना में राज्य में एक मजबूत संगठन के तौर पर उभर गए हैं. साथ ही उनके पास प्रियंका गांधी पर यूपी पर केंद्रित नेतृत्व भी है. वहीं, बीजेपी की राजनीति और योगी सरकार के प्रदर्शन में लोगों के मन में नाराजगी पैदा कर दी है. हालांकि, पार्टी आकलन चाहे कुछ भी कहे, लेकिन चुनाव अभी एक साल दूर हैं. और एसपी, बीएसपी जैसे कई क्षेत्रीय पार्टियां पहले ही काम कर रही हैं।
संवाददाता प्रकाश जोशी
द अचीवर टाइम्स
लखनऊ