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पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप को अब नहीं दी जाएगी कोई भी खुफिया ब्रीफिंग…

पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कई मामलों में पहले राष्ट्रपति हो चुके हैं. मिसाल के तौर पर मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन ने स्पष्ट कर दिया है कि ट्रंप को किसी भी तरह की खुफिया ब्रीफिंग नहीं दी जाएगी. उनका कहना है कि ट्रंप भरोसेमंद नहीं. अगर वाकई में ट्रंप को इंटेलिजेंस ब्रीफिंग से रोका जाता है, तो ये अमेरिकी इतिहास की पहली ऐसी घटना होगी.
जिसमे मौजूदा राष्ट्रपति ने छोड़ते हुए ट्रंप और बाइडन के बीच तनाव इतना गहरा हो गया था कि ट्रंप ने न तो शपथ समारोह में भाग लिया और न ही बाइडन को खुली तौर पर बधाई दी. वे अंत तक यही कहते रहे कि चुनाव नतीजों में बाइडन की टीम ने बेईमानी की है. लेकिन किस्सा यहीं खत्म नहीं हुआ, बल्कि अब ये तनाव राष्ट्रपति बाइडन के तौर-तरीकों से भी झलक रहा है. हाल ही में बाइडन ने साफ कहा है कि वे ट्रंप तक किसी भी तरह की खुफिया ब्रीफिंग नहीं पहुंचने देंगे. ये बात उन्होंने एक चैनल से इंटरव्यू के दौरान कही.
मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन ने ने स्पष्ट कर दिया है कि ट्रंप को किसी भी तरह की खुफिया ब्रीफिंग नहीं दी जाएगी बाइडन का ये स्टेटमेंट सुर्खियों में है
इसकी वजह ये है कि है कि अब तक पूर्व राष्ट्रपतियों को भी वर्तमान राष्ट्रपति जितनी ही खुफिया जानकारियां दी जाती रहीं. ये वहां की परंपरा रही है. इसे प्रेसिडेंट्स डेली ब्रीफिंग (PDB) भी कहते हैं. ये जानकारी अमेरिका और उसके मित्र-शत्रुओं के बारे में सारी गुप्त जानकारियां होती हैं, जो देश की प्रमुख इंटेलिजेंस एजेंसियां जुटाती हैं.
यहां तक कि इस इंटेलिजेंस ब्रीफ में ये तक बताया जाता है कि क्या निकट भविष्य में खुफिया एजेंसी CIA कोई गुप्त ऑपरेशन करने वाली है. इस जानकारी को नेशनल इंटेलिजेंस के निदेशक तैयार करते हैं, जिसमें CIA के अलावा डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी, नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी, रक्षा विभाग, फेडरल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन और खुफिया तंत्र से जुड़े सभी जरूरी लोग शामिल होते हैं. ये लोग मिलकर अपनी जानकारियां इकट्ठा करते हैं और फिर इसे ही राष्ट्रपति समेत सभी पूर्व राष्ट्रपतियों और रक्षा विभाग को सौंपा जाता है.सबसे पहले इस तरह की खुफिया जानकारियों को राष्ट्रपति को देने की शुरुआत भूतपूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के समय में हुई थी. साल 1961 में CIA के अफसर रिचर्ड लेमैन ने ये काम किया था, जिसके बाद तो ये परंपरा ही चल पड़ी. सुपर पावर बन चुके अमेरिका का मकसद साफ था कि वो दुनिया में चल रहे बदलावों पर पैनी नजर रखे और समय से पहले ही कार्रवाई कर सके ताकि वही दुनिया का सर्वेसर्वा बना रह सके.
खुफिया ब्रीफिंग को अमेरिका का सबसे संवेदनशील डॉक्युमेंट्स माना जाता है इस रोजमर्रा की खुफिया ब्रीफिंग की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि साल 2000 में CIA के डायरेक्टर जॉर्ज टेनेट ने नेशनल आर्काइव को कहा है कि वे कभी भी इससे जुड़ी कोई जानकारी प्रकाशित करके नहीं रख सकते. साथ ही उन्होंने ये भी जोड़ा है कि चाहे जानकारी कितनी ही पुरानी और गैरजरूरी क्यों न हो जाए, उसे किसी हाल में नहीं छुपाना चाहिए।कुल मिलाकर इसे अमेरिका का सबसे संवेदनशील दस्तावेज माना जाता है. ये लगभग रोज ही राष्ट्रपति को दिया जाता है. साथ में पूर्व राष्ट्रपति भी चाहें तो इस तक एक्सेस पा सकते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें एक बार रिक्वेस्ट डालनी होती है। हालांकि ट्रंप ने अब तक वाइट हाउस से ऐसा कोई अनुरोध नहीं किया है लेकिन इसके बाद भी बाइडन ने ऐसा कह दिया है. इसकी वजह कार्यकाल के आखिरी दौर में ट्रंप के अजीब बयान हैं. और खासतौर पर कैपिटल हिल में जो हिंसा हुई, उसके बाद से बाइडन ट्रंप को लेकर अतिरिक्त सर्तकता बरत रहे हैं. वैसे ट्रंप को लेकर CNN ने बताया था कि वे अकेले ऐसे राष्ट्रपति रहे, जो वाइट हाउस में रहते हुए भी इन खुफिया ब्रीफिंग्स में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेते थे, बल्कि सप्ताह में एक या दो दिन ही इसे लेते थे।
पत्रकार अदिति सिंह 
द अचीवर टाइम्स लखनऊ

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