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कोरोना के नाम पर लूट मचा रहे निजी अस्पतालों पर जिला प्रशासन ने की कार्रवाई, अस्पताल के साथ ही तीन सरकारी डॉक्टर्स को भी नोटिस

मध्यप्रदेश के इंदौर में कोरोना के नाम पर लूट मचा रहे निजी अस्पतालों पर जिला प्रशासन ने कार्रवाई शुरू कर दी है। कोरोना मरीज के इलाज के लिए छह लाख का बिल दिए जाने के मामले में भंवरकुआं स्थित एप्पल अस्पताल को नोटिस जारी किया गया है। साथ ही तीन सरकारी डॉक्टर्स को भी नोटिस दिए गए हैं, जो अनुमति नहीं होने के बाद भी वहां इलाज के लिए गए।

एप्पल अस्पताल से जब्त रिकाॅर्ड की प्रारंभिक जांच में कई तरह की अनियमितताएं सामने आई हैं, जिसके बाद अस्पताल का लाइसेंस भी निरस्त हो सकता है। कलेक्टर के आदेश पर पुलिस प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की टीम ने मंगलवार को अस्पताल में छापा मारा, इस दौरान बिल और रिकॉर्ड जब्त किए गए। रिकार्ड के आधार पर जूनी इंदौर एसडीएम और डॉ. अमित मालाकार ने जो जांच प्रतिवेदन तैयार किया।

प्रतिवेदन में बताया गया है कि 22 दिन तक कोरोना मरीज को हॉस्पिटल में भर्ती रखा गया और लगभग छह लाख रुपये का बिल थमा दिया। इतने भारी भरकम बिल के बावजूद एक लाख की दवाइयां अलग से मंगवाई। पीपीई किट, आइसोलेशन चार्ज और यूनिवर्सल प्रोटेक्शन के नाम पर प्रतिदिन 9,000 रुपये के हिसाब से राशि वसूल की गई।

आईसीएमआर के निर्देश और डब्लूएचओ की गाइडलाइन के विपरीत एसिंप्टोमेटिक (बिना लक्षण वाले) मरीज होने के बावजूद चार बार आरटीपीसीआर कोविड टेस्ट निजी लैब से करवाया गया, इसमें भी निजी लैब में जो टेस्टिंग चार्ज लगता है, उससे अधिक शुल्क मरीज से वसूल किया गया।। एक बार भी ये टेस्ट करवाने की आवश्यकता नहीं थी, इसके बावजूद बार-बार करवाए गए।

अस्पताल ने किस चार्ज के बदले वसूले कितने रुपये

आइसोलेशन चार्ज (आइसोलेश में ही कोरोना मरीजों को रखा जाता है, फिर अलग से फीस क्यों)।             63 हजार रुपये
यूनिवर्सल प्रोटेक्शन (अस्पताल को भी नहीं पता ये क्या है)।                                                                    63 हजार रुपये
पीपीई किट के तीन हजार रुपये रोज के हिसाब से।                                                                                   63 हजार रुपये
डॉक्टर की विजिटिंंग फीस, सिर्फ 22 दिनों के लिए।                                                                                  1 लाख रुपये
सीटी स्कैन, नेबुलाइजेशन और अन्य जांच की फीस, जो हुई ही नहीं।                                                        8850 रुपये

डॉक्टरों की विजिट के नाम पर वसूले एक लाख रुपये
हॉस्पिटल की लूट यही खत्म नहीं हुई बल्कि तीन से चार डॉक्टरों की रोजाना विजिट करवाकर प्रत्येक डॉक्टर की तीन हजार रुपये फीस चार्ज की गई और एक लाख की राशि तो डॉक्टरों की विजिट के ही रूप में मरीज से वसूली गई।

छापे के दौरान हॉस्पिटल से जो बिल और रिकार्ड मिले थे, उनकी जांच में भी कई तरह की असमानता नजर आई। हर मरीज से लिए गए शुल्क की राशि में भी अंतर मिला। जांच में यह भी पता लगा कि मरीज से रोजाना तीन हजार रुपये प्रतिदिन यूनिवर्सल प्रोटेक्शन के नाम पर लिए गए। वहां भर्ती सभी मरीजों से यह राशि ली जा रही है। जांच समिति को जो बिल की कॉपी दी गई उसमें निजी लैब में करवाई गई कोरोना जांच का उल्लेख नहीं है। मरीज को दिए गए बिल में इसका भी शुल्क जोड़ा गया है।

मरीज के परिजन ने कलेक्टर से की थी शिकायत
सागर निवासी व्यक्ति के परिजन ने कलेक्टर से इसकी शिकायत की थी। इसमें कहा गया था कि 22 दिन तक भर्ती करने के बाद मरीज को छह लाख का बिल दिया गया। एक लाख रुपये की दवाई बाहर से मंगवाई, जिससे इलाज का कुल खर्च सात लाख हो गया। इसके बाद मंगलवार रात को जिला प्रशासन की समिति ने छापामार कार्रवाई की। शिकायत करने वाले मरीज के अलावा अन्य मरीजों के बिल का रिकाॅर्ड भी लिया गया था।

लाइसेंस निरस्त करने का नोटिस
सीएमएचओ डॉ. प्रवीण जड़िया ने इस मामले में तीन दिन में स्पष्टीकरण देने के लिए कहा है। साथ ही कहा गया है कि जवाब न मिलने या असंतोषजनक होने पर मेडिकल एक्ट 2019 की धारा 27 में प्रोफेशनल एवं एथिकल मिसकंडक्ट मानकर मध्यप्रदेश उपचर्या अधि. 1973 एवं नियम 1997 में पंजीयन निरस्त/ एफआईआर कराई जाएगी।

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