लॉकडाउन हुआ तो संस्थागत प्रसव भी घट गए। वह भी 84 फीसदी तक। संस्थागत प्रसव घटा तो नॉर्मल डिलीवरी बढ़ गई। सिजेरियन के मामले घट गए। पर, इससे खुश न हों। इसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं। लापरवाही से कराया गया प्रसव जिंदगी भर का दर्द भी दे रहा है।
अंबेडकरनगर की उर्मिला के बच्चे का प्रसव के दौरान सिर दब गया। प्रसव के 15 दिन बाद उसको झटके आने लगे। बच्चे को लेकर परिवारीजन कई अस्पताल गए लेकिन सबने जवाब दे दिया। अब उसे केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया है। वह बताती हैं कि गर्भ के दौरान अयोध्या के एक निजी अस्पताल में चेकअप कराती थीं। अब वह लॉकडाउन की वजह से अस्पताल नहीं जा पाने की अपनी बेबसी को कोसती हैं। ये दर्द सिर्फ उर्मिला का नहीं है। विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसे बहुत से मामले सामने आ रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा मामले लापरवाही से कराए गए प्रसव से जच्चा को हुए संक्रमण के हैं। वे चिंता जताते हैं कि लॉकडाउन पूरी तरह खत्म होने के बाद ऐसे मामलों में बढ़ोतरी होगी।
लखनऊ के सरकारी अस्पतालों के मार्च और अप्रैल के आंकड़े बताते हैं कि इस दौरान संस्थागत प्रसव में 84 फीसदी तक की गिरावट आई। वजह-गर्भवती को अस्पताल ही नहीं ले जाया जा सका। मार्च में लखनऊ के सरकारी अस्पतालों में करीब 300 प्रसव कराए गए। अप्रैल में यह आंकड़ा 400 के आसपास रहा, जबकि पिछले साल अप्रैल में 2525 संस्थागत प्रसव हुए थे। यानी पिछले साल के मुकाबले महज 16 प्रतिशत का ही संस्थागत प्रसव हुआ। डफरिन अस्पताल में पहले जहां 20 से 25 प्रसव प्रतिदिन होते थे, इन दिनों यह संख्या बमुश्किल 10 होती है। इनमें औसतन सात मामले होते हैं जिनमें प्रसव सिजेरियन के जरिए होते हैं। क्वीन मेरी में प्रसव का आंकड़ा पहले रोजाना 40 से 50 तक का रहा है, जो अब बमुश्किल 20 तक पहुंचता है। यही स्थिति अन्य अस्पतालों की भी है।
निजी अस्पतालों का भी नहीं मिला सहारा
राजधानी में करीब 1500 निजी अस्पताल व डायग्नोसिस सेंटर हैं। इनमें से करीब 150 में प्रसव संबंधी सुविधाएं हैं। सामान्य दिनों में निजी अस्पतालों में हर माह करीब दो हजार प्रसव होते थे। लेकिन मार्च और अप्रैल माह में कोरोना की गाइडलाइन की वजह से ज्यादातर निजी अस्पताल बंद रहे। जो खुले भी उनमें से ज्यादातर भर्ती नहीं ले रहे थे।
अस्पतालों तक वही मामले आए जिनमें जान जाने का खतरा था
विशेषज्ञों का कहना है कि सरकारी अस्पतालों तक वही मामले आए जो बेहद गंभीर थे। प्रसव में अड़चन की वजह से जान को खतरा था। इनमें ज्यादातर का प्रसव सिजेरियन के जरिये हुआ। क्वीन मेरी हॉस्पिटल की डॉ. सुजाता देव बताती हैं कि घर पर हुए प्रसव में हुई लापरवाही के दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं। कई मामले तो ऐसे आ रहे हैं जिनमें अब सर्जरी करनी पड़ रही है।
निजी अस्पताल गईं लेकिन भर्ती नहीं किया, अब संक्रमण से जूझ रहीं
लापरवाही से कराए गए प्रसव से संक्रमण के मामले बढ़े हैं। रसूलपुर निवासी महिला को राजधानी के एक कॉर्पोरेट अस्पताल में भर्ती कराया गया है। महिला का गोमतीनगर के निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था। प्रसव के लिए उस अस्पताल में ले जाया गया, लेकिन अस्पताल ने भर्ती ही नहीं किया। आखिरकार एक अस्पताल से नर्स बुलाकर प्रसव कराया गया। अब वह गर्भाशय के गंभीर संक्रमण से जूझ रही हैं।
लंबे अरसे तक दिखेगा साइड इफेक्ट
लखनऊ आईएमए की अध्यक्ष डॉ. रमा श्रीवास्तव बताती हैं कि लॉकडाउन की वजह से गर्भवती जिन सरकारी या निजी अस्पतालों के संपर्क में थीं वे प्रसव के लिए नहीं पहुंच पाईं। ऐसे में प्रसव परिवार की महिलाओं, दाई या नर्स का जुगाड़कर कराया गया। इसका दुष्परिणाम जच्चा-बच्चा दोनों पर पड़ा। निजी और सरकारी अस्पतालों में ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। कई ऐसे फोन भी आ रहे हैं जिनमें प्रसूता के आंतरिक हिस्सों में चोट और संक्रमण सहित अन्य दिक्कतें हैं। रहा सवाल यह कि कितनों पर प्रभाव पड़ा, इसका अभी कोई निश्चित डाटा नहीं है। पर, हालात जैसे हैं उससे साफ है कि इसका असर लंबे अरसे तक देखने को मिलेगा।
प्रसव के लिए पंजीयन कराने वाली महिलाओं में से 4-5 फीसदी ही अस्पताल आईं
गायनेकोलॉजिस्ट एवं फेडरेशन ऑफ ऑब्सटेट्रिक एंड गायनेकोलॉजिकल सोसाइटीज (फोग्सी) की सदस्य डॉ. तृप्ति बंसल बताती हैं कि करीब दो माह के आंकड़े बताते हैं कि अस्पतालों में 20 फीसदी गर्भवती ही पहुंच पाईं। प्रसव के लिए जिन्होंने अस्पतालों में पंजीयन करा रखा था उनमें से 4-5 फीसदी ही आईं। साफ है कि और का प्रसव घर पर या आसपास के सेंटरों पर हुआ। इसका दुष्परिणाम सामने आ रहा है। वह कहती हैं कि कोई भी गायनेकोलॉजिस्ट हो वह नहीं चाहती कि प्रसव के लिए सिजेरियन का सहारा लिया जाए। आंकड़े भी बताते हैं कि सामान्य दिनों में 60 फीसदी या इससे भी ज्यादा नॉर्मल डिलीवरी अस्पतालों में होती हैं।
घरेलू प्रसव में अक्सर ऐसी समस्याएं आती हैं
गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. अपेक्षा बिश्नोई बताती हैं कि घरेलू प्रसव के बाद अक्सर बच्चेदानी के फटने, संक्रमण होने, रक्तस्राव जैसी शिकायतें अस्पतालों में आती हैं। लोहिया संस्थान के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. केके यादव बताते हैं कि घरेलू प्रसव के दौरान हुई असावधानी से बच्चे के सिर में चोट आने की समस्या अक्सर आती है। इसकी वजह से उसके मंदबुद्धि होने, सिर के पिछले हिस्से में पानी भर जाने, मानसिक रोग से जुड़ी कई बीमारियां होन जैसी समस्याएं आती हैं। बांह खिंचने की वजह से मांसपेशियों में विकृति की समस्या भी देखने को मिलती है।
अगर ये समस्याएं हैं तो न करें नजरअंदाज
आईएमए के सचिव व पीडियाट्रिक सर्जरी के प्रोफेसर डॉ. जेडी रावत बताते हैं कि अगर नवजात को दूध पीने में किसी तरह की दिक्कत हो, शरीर के किसी अंग को छूने से वह रोने लगे, अंगों में सूजन हो या दबे हुए दिखाई दें या फिर घाव सा महसूस हो तो तत्काल चिकित्सक को दिखाएं। वहीं प्रसूता में रक्तस्राव अधिक हो, आंतरिक हिस्सों में लगातार दर्द रहे, पेशाब या शौच जाने में दर्द हो तो उन्हें भी डॉक्टर को दिखाएं।