जब दुनिया समाजवाद,साम्यवाद,पूँजीवाद जैसी विचारधाराओं का विकल्प ढूँढ रही थी ;तब एक भारतीय राजनीतिक संत ने विश्व को एकात्म मानवतावाद के नये और नवीन सूत्र का आधार दिया ।
एकात्म मानवतावाद का अर्थ जहाँ पर व्यक्ति और समाज एक दूसरे के संपूरक होकर संपूर्णता के लिये कार्य करें। जहाँ पर न व्यक्तिवादी होकर समाज को उपेक्षित करना और न ही समाजवादी बनकर व्यक्ति के वयक्तित्व को कुचल देना।।संपूरकता ही एकात्म मानववाद का मुख्य बिंदु है।
एकात्म मानवतावाद की विशाल अवधारणा के साथ ही उन्होंने भारतीय राजनीति को आध्यात्मिक पथ पर चलने ता भी मंत्र दिया ।
भारत को केवल एक राष्ट्र मानकर ही नहीं,अपितु माँ की अवधारणा के साथ स्वीकार्यता को उन्होंने अपने तथा लोगों के विचारों में उतारने का एक बड़ा कार्य किया।
‘जो कमायेगा वही खायेगा’ जैसी स्वार्थपरक विचारधारा से ‘जो कमायेगा वो खिलायेगा ‘ जैसी निस्वार्थपरक विचारधारा देने का श्रेय भी पंडित जी को जाता है।
दलगत राजनीति से सदैव देशहित सर्वोपरि है,यह विचार भी पंडित जी के द्वारा दिया गया।
अपना देश राजनीतिक रुप से मजबूत हो ; उसके साथ-साथ सैन्य रुप से और सभी सैन्य सामग्रियों से सशक्त बनें तथा देश में ही सभी सैन्य सामग्रियों का निर्माण हो सकें ;इस प्रकार की पंडित जी की दूरदर्शिता थी ।
अपना संपूर्ण जीवन में पंडित जी ने गरीब,दु:खियों और वंचितों की सेवा की तथा लोगों को इसके लिये प्रेरित भी किया ।
ऐसे महान राजनीतिक संत एवं महात्मा पंडित दीन दयाल उपाध्याय की आज जयंती है। उनकी जयंती सभी भारतीयों के जीवन में एक नई ऊर्जा, गरीबों-वंचितो की सेवा , अपने संस्कृति एवं सभ्यता के प्रति प्रेम और समर्पण ,राष्ट्रभक्ति और ज्ञान -विज्ञान के प्रित जागरूकता का भाव जागृत करें।