कृष्ण, गिरिधर, मुरलीधर, श्याम, मोहन, मधुसूदन, यशोदानंदन, देवकीनंदन, गोपाल, चक्रधारी, मुरारी, बनवारी, योगीश्वर ये सारे नाम भक्तों ने अपने प्रभु कन्हैया को दिए हैं। जिस रूप में प्रभु ने भक्तों की रक्षा की, भक्तों ने उन्हें उसी नाम से याद करना शुरू कर दिया। मान्यता है कि कान्हा की पूजा चाहे जिस रूप में करो, वह भक्तों पर कृपा जरूर बरसाते हैं।
इस साल देशभर में जन्माष्टमी 23 अगस्त को मनाई जाएगी या 24 अगस्त को इसको लेकर उलझन की स्थिति है। कहीं जन्माष्टमी 23 अगस्त की बताई जा रही है तो कहीं इसे 24 अगस्त को बताया जा रहा है। मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद यानी कि भादो माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था, जो कि इस बार 23 अगस्त को पड़ रही है। ज्योतिर्विदों की मानें तो भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, इसलिए जन्माष्टमी रोहिणी नक्षत्र में मनाया जाना सर्वोत्तम माना गया है।
पंचांग के मुताबिक, रोहिणी नक्षत्र 23 अगस्त 2019 रात 11:56 बजे से ही शुरू हो जाएगा। 23 अगस्त को रोहिणी नक्षत्र 44 घड़ी का है इसलिए कृष्ण का जन्मदिन इस घड़ी में मनाना ही शुभ माना गया है। इस बार 23 अगस्त शुक्रवार को अष्टमी तिथि व रोहिणी नक्षत्र से युक्त अत्यंत पुण्यकारक जयंती योग में मनाया जाएगा। वही वैष्णव संप्रदाय व साधु संतो की कृष्णाष्टमी 24 अगस्त दिन शनिवार को उदया तिथि अष्टमी एवं औदयिक रोहिणी नक्षत्र से युक्त सर्वार्थ अमृत सिद्धियोग में मनाई जाएगी।
जन्माष्टमी की पूजा की विधि
यह व्रत अष्टमी तिथि से शुरू हो जाता है। जन्माष्टमी की पूर्व रात्रि हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। सुबह स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठें। इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें। अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए प्रसूति गृह का निर्माण करें। इसके बाद बाल कृष्ण लड्डू गोपाल जी की मूर्ति मंदिर में रखें, भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके बाद रात्रि 12 बजे भगवान कृष्ण का जन्म कराएं। भगवान के गीत गाएं। गंगाजल से पहले कृष्ण को स्नान कराके नए वस्त्र और आभूषण पहनाएं। भगवान के भजन गाएं। रात 12 बजे जन्म कराकर गीत संगीत के बाद प्रसाद का वितरण करें।
जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद भक्त व्रत का संकल्प लेते हुए अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद पारण यानी कि व्रत खोल सकते हैं। कृष्ण की पूजा नीशीथ काल यानी कि आधी रात को की जाती है। इसके पश्चात श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करें।
जन्माष्टमी का महत्व
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पूरे भारत वर्ष में विशेष महत्व है। यह हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में आठवां अवतार लिया था। देश के सभी राज्य अलग-अलग तरीके से इस महापर्व को मनाते हैं। इस दिन क्या बच्चे क्या बूढ़े सभी अपने आराध्य के जन्म की खुशी में दिन भर व्रत रखकर कृष्ण की महिमा का गुणगान करते हैं।
शुभ मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त- दोपहर 12:04 से 12:55 बजे तक
जन्माष्टमी निशिता पूजा का समय- मध्य रात्रि 12:09 से 12: 47 बजे तक
निशिता पूजा शुभ मुहूर्त – 38 मिनट
अष्टमी तिथि- 24 अगस्त की रात्रि 12:01 से 12:46 तक
भादों की कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर ये काम करने से होगा नुकसान
जन्माष्टमी की पूजा के समय विशेष ध्यान रखना होगा, अन्यथा इसके नुकसान भी झेलने पड़ सकते हैं।
1. इस दिन अगर आप दूसरों को नुकसान पहुंचाते हैं तो इसका तीन गुना पाप भी आपको भोगना पड़ता है। इसलिए जन्माष्टमी पर कोई बुरा काम न करें।
2. इस दिन कान्हा की पुरानी मूर्ति भी पूजनी चाहिए।
3. जन्माष्टमी के व्रत को व्रतराज भी कहा जाता है। इस दिन घर में शांति और सद्भाव बनाए रखने से लक्ष्मी प्रसन्न होती है। इसलिए विवाद कलह से दूर रहें।
4. विष्णु पुराण के अनुसार इस दिन भगवान के भोग में तुलसी का पत्ता जरूर होना चाहिए। बिना तुलसी के भगवान प्रसाद स्वीकार नहीं करते।
5. जन्माष्टमी के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए। इस दिन मांस, मछली और मदिरा का सेवन न करें।