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लम्पी वायरस से बचाव हेतु कार्ययोजना बनाकर प्रभावी कार्यवाही करें सम्बन्धित अधिकारीगण-जिलाधिकारी, श्रावस्ती

लम्पी स्किन डिजीज से बचाव हेतु एडवाइजरी जारी

लम्पी वायरस से बचाव हेतु कार्ययोजना बनाकर प्रभावी कार्यवाही करें सम्बन्धित अधिकारीगण-जिलाधिकारी

श्रावस्ती, 03 सितम्बर, 2023। सू0वि0। जिलाधिकारी कृतिका शर्मा ने बताया है कि लम्पी वायरस का प्रभाव पशुओं में पाया जा रहा है। इस बीमारी से संक्रमित होकर पशुओं की मृत्यु हो जाती हैं। उन्होने बताया कि लम्पी स्किन डिजीज एक विषाणुजनित रोग है। यह वायरल त्वचा रोग है जो मुख्य रूप से जानवरों को प्रभावित करता है। यह खून चूसने वाले कीड़ों, जैसे मक्खियों, मच्छरों की कुछ प्रजातियों और किलनी से फैलता है। लंपी के शुरुआती लक्षण जैसे पशुओं को तेज बुखार, आंख व नाक से पानी गिरना, पैरों में सूजन, पूरे शरीर में कठोर, चपटी गांठ आदि प्रकार के लक्षण पाये जाते हैं। कभी-कभी भी सम्पूर्ण शरीर की चमड़ी विशेष रूप से सिर, गर्दन, थूथन, थनों, गुदा व अंडकोष या योनिमुख के बीच के भाग पर गांठो के उभार बन जाते है। कभी भी पूरा शरीर गांठो से ढक जाता है। गांठे (नोडयूल) नेकोटिक और अल्सरेटिव भी हो सकते है, जिससे मक्खियों द्वारा अन्य स्वस्थ पशुओं में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। गम्भीर रूप से प्रभावित जानवरों में नैकोटिव घाव, श्वसन और जठरांत्र में भी विकसित हो जाते है। श्वसन पथ में घाव होने से सांस लेने में कठिनाई होती है, पशुओं का वजन घट जाता है। शरीर कमज़ोर हो जाता है एवं अत्याधिक कमजोरी से पशु की मृत्यु भी हो सकती है। गर्भवती पशुओं में गर्भपात हो सकता है, दुधारू गायों में दुग्ध उत्पादन कमी आदि लक्षण हो सकते है।

लम्पी वायरस की प्रभावी रोकथाम के लिए जनपद स्तरीय समिति का भी गठन किया गया है। जिलाधिकारी ने मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी एवं समस्त पशु चिकित्सा अधिकारियों को निर्देशित किया है कि लम्पी वायरस से बचाव हेतु विस्तृत कार्ययोजना बनाकर प्रभावी कार्यवाही करें, जिससे लम्पी वायरस के प्रभाव को कम किया जा सके। उन्होने समस्त पशु चिकित्सा अधिकारियों को निर्देशित किया है कि सूचना प्राप्त होते ही तत्काल पशुओं का स्वास्थ्य परीक्षण करें। रोग ग्रस्त पशु को स्वस्थ्य पशु से अलग करायें। प्रभावित स्थान से पशु का आवागमन प्रतिबन्धित कराये एवं प्रभावित क्षेत्रों में पशु मेलों का आयोजन पर रोक लगायें। रोग ग्रस्त पशुओं का सैम्पुल एकत्र कर परीक्षण हेतु नेशनल हाई सिक्योरिटी लैब, भोपाल प्रेषित करें।

लम्पी वायरस से बचाव हेतु विस्तृत जानकारी देते हुए मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा0 मानव ने बताया है कि इस रोग के समय विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए। लक्षण प्राप्त होते ही सर्वप्रथम निकटतम पशु चिकित्साधिकारी को सूचित करें, प्रभावित पशु को स्वस्थ पशु से अलग करें, प्रभावित पशुओं का आवागमन प्रतिबन्धित करें, पशुओं को सदैव साफ पानी पिलायें, पशु के दूध को उबाल कर पियें, पशुओं को मच्छरों, मक्खियों, किलनी आदि से बचाने हेतु पशुओं के शरीर पर कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करें, पशुबाड़े और पशुखलिहान की फिनायल/सोडियम हाइपोक्लोराइट इत्यादि का छिड़काव कर उचित कीटाणु शोधन करें। बीमारी पशुओं की देखभाल करने वाले व्यक्ति को भी स्वस्थ पशुओं के बाड़े से दूर रहना चाहिए। पहले स्वस्थ पशुओं को चारा व पानी दें, फिर बीमार पशुओं को दें। बीमार पशुओं को प्रबन्ध करने के पश्चात् हाथ साबुन से धोयें।

रोग प्रकोप के समय क्या ना करें-सामूहिक चराई के लिए अपने पशुओं को ना भेजे, पशु मेला एवं प्रदर्शनी में अपने पशुओं का ना भेजे, बीमार एवं स्वस्थ पशुओं को एकसाथ चारा-पानी न करायें, प्रभावित क्षेत्रों से पशु खरीद कर न लायें। यदि किसी पशु की मृत्यु होती है, तो शव को खुले में न फेकें एवं वैज्ञानिक विधि से दफनायें। रोगी पशु के दूध को बछड़े को न पिलायें।

उपचार- उन्होने बताया कि विषाणुजनित रोग होने के कारण इसका कोई उचित उपचार नहीं है। लक्षण दिखाई देने पर तत्काल निकट के पशु चिकित्साधिकारी को सूचित करें। बुखार की स्थिति में पशु चिकित्सक की सलाह से ज्वर नाशक यथा पैरासीटामॉल एवं एन्टीवायोटिक आदि औषधियों का प्रयोग करें। सूजन एवं धर्म रोग की स्थिति में उचित दवाईयों का लेप लगाये। घावों को मक्खियों से बचाने हेतु नीम की पत्ती, मेंहदी पत्ती, लहसुन, हल्दी पावडर को नारियल तेल में लेप बनाकर प्रयोग किया जा सकता है। रोग ग्रस्त पशुओं का टीकाकरण कदापि न किया जाय। टीकाकरण कार्य हेतु प्रत्येक पशु में नई सुई का प्रयोग किया जाय। पशु बाड़ों में समय-समय पर फिनायल (2 प्रतिशत)/सोडियम हाइपोक्लोराइट (2-3 प्रतिशत)/आयोडीन कम्पाउण्ड (1ः33 डाइल्यूशन) आदि का छिड़काव करायें।

बीमारी की रोकथाम के लिए टीकाकरण ही सबसे अच्छा तरीका है। वर्तमान में लम्पी स्किन डिजीज वैक्सीन उपलब्ध नहीं है, परन्तु इंडियन इम्युनोलॉजिकल तथा हेस्टर बायोसाइंस द्वारा निर्मित गॉट पॉक्स टीका पशुओं को बीमारी से बचाने में अत्यंत कारगर है। इस टीके की 3-5 मि०ली० मात्रा चमड़े में दिए जाने से एक वर्ष तक प्रभावी प्रतिरक्षण रहता है।

रिपोर्ट मण्डल ब्यूरो चीफ:-  सुहेल युसुफ (पत्रकार) द अचीवर टाइम्स मो० 9839804403 जिला- बहराइच (यू०पी०)

तौहीद अहमद (रिपोर्टर) द अचीवर टाइम्स मो० 7237080713 जिला- बहराइच (यू०पी०)

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