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शाहीन बाग गैंग’ को लगा झटका, SC ने खारिज की धरने पर पुनर्विचार याचिका…

नागरिकता संशोधन कानून सी ए ए के विरोध में बीते साल शाहीन बाग में तंबू-कनात गाड़ रास्ता रोक कर हजारों लोग धरने पर बैठ गए थे. इसको लेकर आसपास के रहने वाले लोगों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ा था. बाद में कोरोना संक्रमण के सामने आने पर शाहीन बाग धरना पुलिस-प्रशासन की मदद से खत्म कराया गया. इसके खिलाफ लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी के समर्थकों ने याचिका दायर की थी, जिसका फैसला शाहीन बाग के खिलाफ आया था. इसी फैसले को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर की गई, जिसे सुप्रीम कोर्ट (Supre ने खारिज कर दिया. इस तरह सर्वोच्च अदालत ने पिछले साल अक्टूबर के महीने में शाहीन बाग पर दिए गए फैसले को बरकरार रखा है.
सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था अपने फैसले में
इस फैसले के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कहा है की धरना-प्रदर्शन लोग अपनी मर्जी से और किसी भी जगह नहीं कर सकते. धरना प्रदर्शन लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन उसकी भी एक सीमा है. गौरतलब है कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि धरना-प्रदर्शन के लिए जगह चिन्हित होनी चाहिए. अगर कोई व्यक्ति या समूह इससे बाहर धरना-प्रदर्शन करता है, तो नियम के मुताबिक उन्हें हटाने का अधिकार पुलिस के पास है. धरना-प्रदर्शन से आम लोगों पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए. धरने के लिए सार्वजनिक स्थान पर कब्जा नहीं किया जा सकता. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग के सीएए विरोधी आंदोलन को गैर कानूनी बताया था. इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार करने के लिए चुनौती दी गई थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी है. तीन न्यायाधीशों एस के कॉल, अनिरुद्ध बोस और कृष्ण मुरारी की बेंच ने याचिका खारिज की है.
CAA पर भी अफवाहों ने जन्म दिया था शाहीन बाग को गौरतलब है कि 2019 में शाहीन बाग दिल्ली में सीएए के विरोध  केंद्र के रूप में सामने आया था. यहां बड़ी संख्या में लोगों ने पहुंचकर नागरिकता कानून का विरोध किया था. कोरोना वायरस महामारी के चलते बीते साल मार्च में लगाए गए लॉकडाउन के बाद प्रदर्शन खत्म हुआ था. प्रदर्शन में मौजूद लोग और आलोचक इस कानून को ‘मुस्लिम विरोधी’ बता रहे थे. इस धरना-प्रदर्शन के चलते दिल्ली का यातायात काफी प्रभावित हुआ था. यहां तक कि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे पर सीएए को लेकर दिल्ली में हिंसा भी हुई थी. ऐसे में बीते अक्टूबर कोर्ट में दिल्ली के रहवासी अमित साहनी ने एक जनहित याचिका दायर की थी. इस पर अदालत ने फैसला दिया था ‘हमें यह साफ करना होगा कि आम रास्ते और सार्वजनिक जगहों पर इस तरह से और वह भी अनिश्चितकाल के लिए कब्जा नहीं किया जा सकता है. लोकतंत्र और असंतोष रहते हैं, लेकिन असंतोष का प्रदर्शन तय जगह पर होना चाहिए।
प्रियंका मिश्रा 
द अचीवर टाइम्स लखनऊ

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