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लोन मोरेटोरियम को आगे बढ़ाने और ब्याज में छूट देने की याचिका पर आज सुप्रीम सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को लॉकडाउन के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से दिए गए लोन मोरेटोरियम को आगे बढ़ाने और ब्याज में छूट देने की याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। इस मामले पर बुधवार को बहस पूरी नहीं हुई थी। लोन मोरेटोरियम का मतलब होता है कर्ज की किस्त को कुछ महीनों के लिए टालने की सुविधा। कोरोना की स्थिति और लॉकडाउन को देखते हुए मार्च में पहले यह सुविधा तीन महीने के लिए दी गई थी। इसे बाद में तीन और महीने के लिए बढ़ा दिया गया था।

केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि अगर ऋण रियायत अवधि का ब्याज माफ कर दिया गया तो यह नुकसानदेह साबित होगा। इससे बैंकों की सेहत खराब हो जाएगी। बैंक कमजोर पड़ जाएंगे, जो कि अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा हैं।

जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और संकटग्रस्त परिसंपत्तियों का पुनर्निर्माण करने के लिए मजबूत बैंकों का होना आवश्यक है। उन्होंने यह भी कहा कि विभिन्न प्रकार के बैंक हैं, एनबीएफसी भी हैं।

कोविड-19 का प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों पर अलग-अलग है। उन्होंने ये बातें उस वक्त कहीं जब रियल एस्टेट, बिजली क्षेत्र, पर्यटन, एमएसएमई और अन्य उद्योगों की ओर से कहा गया कि मार्च के बाद से आय कम होती जा रही है, ऐसे में मोरेटोरियम (रियायत) अवधि के लिए ब्याज वसूलना अनुचित और अतार्किक है।

मेहता ने पीठ से कहा कि हम यहां प्रतिकूल वाद को लेकर नहीं हैं। आप यहां हैं। हम सब यहां हैं। सभी संकट का समाधान निकालने के लिए हैं। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए कुछ विकल्प उपलब्ध हैं। पहला, ब्याज को माफ करना। दूसरा, व्यापक है।

इसके तहत पहला कदम ऋणों के पुनर्भुगतान के बोझ को कम करना होगा। अगली प्राथमिकता विभिन्न क्षेत्रों को फिर से पटरी पर लाने की है ताकि अर्थव्यवस्था चलती रहे। परिसंपत्तियों का पुनर्गठन हो और फिर बैंकिंग क्षेत्र सुचारू तरीके से काम करें।

उन्होंने कहा कि विभिन्न प्रकार के ऋण और कर्जदाताओं से निपटने के लिए अलग-अलग बैंक हैं। अधिकांश अर्थव्यवस्था बड़े कॉरपोरेट्स पर नहीं, बल्कि छोटे व्यवसायों पर चलती है।

बैंक ऋण के पुनर्गठन के लिए स्वतंत्र पर कर्जदारों को दंडित नहीं किया जा सकता : पीठ
तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि बैंक ऋण के पुनर्गठन के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन कर्ज लेने वालों को दंडित नहीं किया जा सकता है। कोविड-19 महामारी के दौरान ऋण ईएमआई स्थगन योजना में ब्याज लगाकर ईमानदार ऋणकर्ताओं को दंडित नहीं कर सकते हैं।

लोग मुश्किल हालात से गुजर रहे: याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ताओं के वकील राजीव दत्ता ने कहा कि लोग मुश्किल हालात से गुजर रहे हैं और यह योजना सभी के लिए दोहरी मार की तरह है। उन्होंने दलील दी कि ब्याज लेना प्रथमदृष्टया गलत है और बैंक इसे वसूल नहीं कर सकते। सीआरईडीएआई के वकील आर्यमन सुंदरम ने कहा कि लंबे समय तक कर्जकर्ताओं पर दंडात्मक ब्याज वसूलना अनुचित है, इससे एनपीए बढ़ सकता है।

शॉपिंग सेंटर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के वकील रंजीत कुमार ने कहा कि फार्मा, एफएमसीजी और आईटी सेक्टर के विपरीत शॉपिंग सेंटर्स और मॉल ने बंद के दौरान अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है। याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि मोरेटोरियम अवधि के लिए ब्याज नहीं वसूला जाना चाहिए।

31 अगस्त को खत्म हो गई है मोरेटोरियम की सुविधा
बता दें कि कोरोना संक्रमण के आर्थिक प्रभाव को देखते हुए आरबीआई ने मार्च में तीन महीने के लिए मोरेटोरियम सुविधा दी थी। यह सुविधा एक मार्च से 31 मई तक तीन महीने के लिए लागू की गई थी। बाद में आरबीआई ने इसे तीन महीनों के लिए और बढ़ाते हुए 31 अगस्त तक के लिए कर दिया था। यह सुविधा 31 अगस्त को खत्म हो गई है।

मोरेटोरियम नहीं बढ़ा तो सितंबर से देनी होगी कर्ज की किस्त
सुप्रीम कोर्ट ने मोरेटोरियम की अवधि नहीं बढ़ाई तो इस सुविधा का लाभ लेने वाले सभी लोगों को सितंबर से अपने कर्ज की किस्त का भुगतान करना होगा।

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