संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने मंगलवार को कहा कि पाकिस्तान आतंकवाद का केंद्र है। उन्होंने यूएन की उस रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें विदेशी आतंकवादी हमलों में पाकिस्तान की भागीदारी को दोहराया गया है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के आतंकियों की अफगानिस्तान में उपस्थिति है जो वहां आतंकी हमलों को अंजाम देते हैं।
टीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि यह सर्वविदित तथ्य है कि पाकिस्तान आतंकवाद का केंद्र है। पाकिस्तान आतंकवाद और सूचीबद्ध आतंकवादियों, अंतरराष्ट्रीय रूप से नामित आतंकवादी संस्थाओं जमात-उद-दावा, लश्कर-ए-तैयबा, जेईएम और हिज्बुल मुजाहिद्दीन और व्यक्तियों का सबसे बड़ा घर है।
यूएन की एनालिटिकल सपोर्ट एंड सैंक्शन्स मॉनिटरिंग टीम की 26वीं रिपोर्ट का हवाला देते हुए राजदूत ने कहा कि यूएन ने अपनी रिपोर्ट में विदेश में आतंकवादी हमलों में पाक की भागीदारी को दोहराया है। हालिया रिपोर्ट में, विश्लेषणात्मक सहायता और प्रतिबंधों की निगरानी करने वाली टीम जो आईएसआईएल, अल-कायदा की आतंकवादी गतिविधियों पर समय-समय पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करती है, इसमें पाक की भागीदारी के प्रत्यक्ष संदर्भ मिले हैं।
स्थायी प्रतिनिधि ने कहा, ‘इस रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि पाकिस्तानी आतंकवादी समूहों के नेतृत्व में हैं। रिपोर्ट में अल-कायदा के नेता के नाम का उल्लेख किया गया है जो पाक का नागरिक है। यह एक स्पष्ट स्वीकार्यता है कि इन संस्थाओं को नेतृत्व और धन पाक से मिलता है।’
उन्होंने आगे कहा, ‘मई में जारी एक रिपोर्ट में, यह उल्लेख किया गया है कि पाक में स्थित आतंकवादी संगठन जेईएम और एलईटी की अफगानिस्तान में आतंकवादियों के साथ उपस्थिति लगातार जारी है और वे वहां आतंकवादी हमलों को अंजाम देने में शामिल हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने ऑन रिकॉर्ड कहा है कि पाक में करीब 40,000 आतंकी मौजूद हैं।’
उन्होंने कहा कि यूएन रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि 6,000 से 6,500 पाकिस्तानी आतंकवादी पड़ोसी देश अफगानिस्तान में हैं। इसमें से ज्यादातर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के हैं, जो दोनों ही देशों के लिए खतरा हैं।
स्थायी प्रतिनिधि ने कहा कि पाक द्वारा द्वीपक्षीय मुद्दे का अतंरराष्ट्रीयकरण किया जाना कोई नई बात नहीं है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने जो कहा है, उसके विपरीत, 1965 से भारत-पाक मुद्दे पर सुरक्षा परिषद की कोई औपचारिक बैठक नहीं हुई है। हाल ही में जो कुछ सामने आया वह पूरी तरह से अनौपचारिक बैठक थी, जो कि एक रिकॉर्डेड चर्चा भी नहीं है। सुरक्षा परिषद में व्यावहारिक रूप से चीन को छोड़कर, सभी देशों ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि यह एक द्विपक्षीय मुद्दा था।
पाकिस्तान की कोशिशें विफल हुई हैं। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने अपने पिछले साल अगस्त में दिए अपने वक्तव्य में स्पष्ट रूप से 1972 के द्विपक्षीय शिमला समझौते का उल्लेख किया था। नतीजतन यूएनएससी में पाक के प्रयासों को कोई सफलता नहीं मिली। मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि पाकिस्तान द्वारा जम्मू और कश्मीर के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र को शामिल करने की कोशिशों का कोई परिणाम नहीं निकला और भारत ने हर मोड़ पर उसके गलत आरोपों का खंडन किया।