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महामारी में काम जाने पर लगाया ठेला लेकिन हार नही मानी खिलाड़ियों ने

कोरोना काल में हर किसी की जिंदगी प्रभावित हो रही है। इससे खेल और खिलाड़ी भी अछूते नहीं है। हम बात कर रहे हैं कुछ ऐसे ही खिलाड़ियों की जिन्होंने न सिर्फ प्रदेश और देश में अपनी काबलियत का डंका बजाया बल्कि विदेशों में भी धूम मचाई। लेकिन आज कोरोना से उपजे हालातों के चलते उनकी जॉब चली गई फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और एक नई राह तलाश ली। साथ ही युवाओं को संदेश भी दिया कि हौसले के साथ बढ़ाए गए कदम कामयाबी जरूरी दिलाते हैं। काम कोई छोटा नहीं होता…। बशर्ते आप के इरादे मजबूत हो…। पेश है कुछ ऐसे राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों पर खास रिपोर्ट, जिन्होंने खेल से इतर अपने नए काम से जिंदगी की गाड़ी चलाकर लोगों के लिए मिसाल कायम की…।

नौकरी नहीं रही तो चाट बेचना शुरू किया
चौक स्टेडियम के पावर लिफ्टिंग कोच एवं पूर्व इंटरनेशनल प्लेयर शत्रुघ्न लाल संविदा कर्मचारी थे। वो चौक स्टेडियम में बच्चों को पावर लिफ्टिंग की बारीकियां सिखाते थे, लेकिन कोरोना के चलते घर बैठे थे। कोरोना संकट खत्म होने का इंतजार लंबा हुआ तो आर्थिक स्थितियां भी बिगड़ने लगी। ये हालात सिर्फ लाल के ही नहीं थे। उनके जैसे प्रदेश में करीब 450 प्रशिक्षक थे, जिनकी माली हालात खराब हो चुकी थी। लेकिन लाल शत्रुघभन ने चाट की रेड़ी लगाकर साथियों को एक राह दिखाई, जो आज भी नौकरी के इंतजार में बैठे हुए हैं। बीती पांच जुलाई को उन्होंने ऐशबाग में किराए पर एक दुकान ली और अपने परिवारीजनों की सहायता से चाट, पाव भाजी, वड़ा पाव आदि बनाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उनकी दुकान पर भीड़ जुटनी शुरू हो गई है। शत्रुघन बताते हैं घर की माली हालत खराब होने के कारण उन्हें चाट की दुकान खोलने का ख्याल आया। चूंकि पापा जी भी इसी व्यवसाय से जुड़े थे, ऐसे में मुझे काम करने में कोई खास दिक्कत नहीं हुई। अभी दुकान पर ज्यादा भीड़ नहीं है, लेकिन घर बैठने की बजाए चाट बेचकर पैसा कमाना ज्यादा बेहतर है। उन्होंने कहा कि चौक स्टेडियम में प्रशिक्षक के तौर पर पच्चीस हजार रुपये माहवार कमा लेता था। साथ ही पावर लिफ्टिंग एसोसिएशन से जुड़ने से भी थोड़ा बहुत पैसा और मिल जाता था, लेकिन वर्तमान में कोरोना के चक्कर में सब कुछ खत्म सा हो गया है। फिलहाल मेरा लक्ष्य बेटे और बेटी की पढ़ाई के लिए पैसा जुटाना है ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो जाए। जहां तक संविदा प्रशिक्षक की जॉब का सवाल है तो दुआ करता हूं कि जल्द ही आमजन कोरोना से सुरक्षित और सरकार हम जैसे प्रशिक्षकों के लिए नौकरी बहाल करे।

सब्जी बेचकर गुजारा कर रहे राष्ट्रीय पदक विजेता रोशन

वर्ष 2015 में रोपड़ (पंजाब) में आयोजित नेशनल स्कूल गेम्स में कांस्य पदक जीतने वाले रोशन कुमार को कोरोना वायरस के संक्रमण से बदहाली की स्थिति में ला दिया है। आलम यह है कि उसे अपनी मां और खुद का पेट पालने के लिए सब्जी का ठेला लगाना पड़ा। मवइया सब्जी मंडी में ठेला लगाने वाले रोशन बताते हैं कि मेरी मां बीमार है और घर की आर्थिक स्थिति भी बहुत खराब हो चुकी है।

लॉकडाउन से पहले मोतीनगर में बच्चों को कराटे की ट्रेनिंग देता था, लेकिन अब सब कुछ बंद हो चुका है। यही कारण है कि मुझे मवइया सब्जी मंडी में एक दुकान खोलनी पड़ी। इससे मुझे काफी राहत मिली और मैं आने वाले वक्त में चुनौतियों के लिए तैयार है।

काम नहीं मिला तो समान ढोना शुरू कर दिया

राष्ट्रीय स्तर की तमाम प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाले सुनील कुमार शहर के जाने वाले कराटे प्रशिक्षक है, लेकिन मौजूदा वक्त में उनके लिए दो जून की रोटी इकट्ठा करना बड़ी समस्या बन गया है। ऐसे में सुनील ने अपने पिता और भाई की तरह ट्रांसपोर्ट नगर में समाना ढोने का काम शुरू कर दिया है। वे बताते हैं कि इस वक्त हर खिलाड़ी की स्थिति खराब है। मेरी सभी से गुजारिश है कि वे फिलहाल अपनी लिए कोई छोटा-मोटा काम तलाश कर ले। मैं इस वक्त अपने पिता और भाई के साथ ट्रांसपोर्ट नगर में समान ढो रहा हूं, जिससे थोड़ा बहुत पैसा मिल जाता है। उम्मीद है कि आने वाले समय में स्थितियां सामान्य होगी और फिर मैं कराटे की ट्रेनिंग दे सकूंगा।

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