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पुरानी भूल और बड़ी साजिश का परिणाम था कानपुर मुठभेड़

कानपुर के चौबेपुर मुठभेड़ में बदमाशों ने बड़ी साजिश की थी। वो पुलिसकर्मियों को मारकर शव जलाने के प्रयास में थे। इसीलिए एक के ऊपर एक रखकर शवों के ढेर लगा दिए थे। पुलिस की गाड़ियों को भी फूंकने की तैयारी थी। मगर तभी भारी पुलिस बल पहुंच गया और बदमाश फरार हो गए। गांव की सड़कें खून से रंगी थीं। हालात बयां कर रहे थे कि किस कदर पुलिसकर्मियों पर बर्बरता हुई है।

विकास दुबे के घर तीन तरफ से सड़क आती हैं। तीनों तरफ की सड़कों पर तकरीबन सौ मीटर की दूरी पर इधर उधर खून-खून ही फैला हुआ था। देखने से पता चलता है कि किस तरह से पुलिसकर्मी खून से लथपथ होकर जान बचाने को इधर-उधर भागते रहे। एक पुलिसकर्मी भागा तो उसको बदमाशों ने उसे खटिया पर गिरा लिया और गोलियों से भून दिया। पुलिसकर्मी भाग-भाग कर किसी के घरों में, किसी के बाथरूम में छिप गए। तब बदमाशों ने एक तरह से सर्च ऑपरेशन चलाकर उनको खोज-खोज कर मारा और फिर शव क्षत-विक्षत किए।

14 साल पहले सहारनपुर की पुलिस ने भी गिरफ्तार किया था

कानपुर में पुलिसकर्मियों पर गोलियां बरसाने वाले विकास दुबे को 14 साल पहले सहारनपुर की पुलिस ने भी गिरफ्तार किया था। उस वक्त विकास के पास मादक पदार्थ बरामद होने पर गिरफ्तार कर उसके खिलाफ नारकोटिक्स एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज की गई थी। परंतु इस मामले में पुलिस से चूक हो गई, जिसका विकास ने पूरा फायदा उठाया।

यह बात वर्ष 2006 की है। जनकपुरी थाना पुलिस ने एसबीडी जिला अस्पताल के चौराहे के पास से 25 जून 2006 को विकास दुबे को गिरफ्तार किया था। उसके पास से पांच किलो डोडा पोस्त बरामद हुआ था। उस समय सहारनपुर के एसएसपी अमिताभ यश थे, जो अब एसटीएफ में हैं।

जनकपुरी थाने पर विकास दुबे से एसएसपी ने पूछताछ की थी। तब उसकी लंबी आपराधिक लिस्ट सामने आई थी। उस समय भी विकास पर करीब 50 मुकदमे दर्ज थे। यह भी पता चला कि विकास दुबे ने गिरफ्तारी से पहले देवबंद क्षेत्र में अपने एक परिचित के यहां शरण ली थी।

उस मामले में अधिवक्ता नीरज तिवारी ने विकास दुबे की जमानत के लिए पैरवी की थी। पुलिस ने विवेचना पूरी करने के उपरांत अगस्त 2006 में चार्जशीट न्यायालय में दाखिल कर दी थी। अधिवक्ता नीरज तिवारी ने बताया कि विकास दुबे की जमानत हमने कराई थी, लेकिन उसके बाद मुकदमे में क्या हुआ, पता नहीं। उधर, एसपी सिटी विनीत भटनागर का कहना है कि विकास दुबे पर दर्ज आपराधिक मामले खंगाले जा रहे हैं, रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेजी जाएगी।

एंबुलेंस से कोर्ट ले जाने पर उठे थे सवाल
विकास दुबे को पुलिस ने जब गिरफ्तार किया था तो उसकी रीढ़ में दिक्कत बताई गई थी। उसे एंबुलेंस से कोर्ट ले जाया गया था। तब उसकी गिरफ्तारी पर सवाल भी उठे थे। क्योंकि जो शातिर हिस्ट्रीशीटर ठीक से चल भी नहीं पा रहा था, उससे पांच किलो डोडा पोस्त बरामद दिखाया था। पुलिस की इसी गलती का फायदा आरोपी विकास दुबे ने उठाया और उसे जमानत मिल गई थी।

ग्रामीणों ने बंद कर दी थीं लाइटें  
दबिश पड़ते ही पहले से तय साजिश के मुताबिक ग्रामीणों ने पूरे गांव की स्ट्रीट लाइटों को बंद कर दिया था। इससे पुलिसकर्मी समझ ही नहीं पा रहे थे कि उनको भागना किधर है। दूसरी तरफ बदमाशों को गांव का एक-एक कोना पहचाना हुआ था। इसलिए उन्होंने पुलिसकर्मियों को आसानी से घेरकर मौत के घाट उतार दिया।

पुलिसकर्मियों ने दिखाई हिम्मत
सीओ देवेंद्र मिश्र और एसओ महेश यादव के अलावा अन्य पुलिसकर्मियों ने मोर्चा लेने का प्रयास किया था। चूंकि पुलिस को इस तरह के भीषण हमले का अंदाजा नहीं था इसलिए उनकी उंगलियां असलहों के ट्रिगर पर नहीं थीं। जब सामने से अंधाधुंध गोली चली तो पुलिसकर्मियों ने असलहे निकालकर जवाबी फायरिंग की मगर बदमाश इतनी अधिक संख्या में थे कि पुलिसकर्मी कम पड़ गए। आखिर में सभी को भागना पड़ा।

पिता की देखभाल को रखे हैं दो सेवक
वर्ष 2001 में भाजपा के दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री संतोष शुक्ला की थाने में घुसकर हत्या करने के आरोपी रहे और अब दोषमुक्त विकास का परिवार गांव में नहीं रह रहा है। सिर्फ पिता रामकुमार दुबे ही गांव में रहते हैं। मां सरला देवी छोटे बेटे दीपू दुबे के साथ कानपुर में रहती हैं। दीपू दुबे प्रॉपर्टी का बिजनेस करता है। गांव में पिता की देखभाल के लिए विकास ने रेखा और उसके पति कल्लू को बतौर सेवक रखा है। ये दोनों बिकरू के इसी विशालकाय घर में रहते हैं। बताते हैं कि गुरुवार रात जब गोलियां चलीं तब भी ये दोनों रामकुमार के साथ मौजूद थे।

 

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