सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि कर्ज अदायगी में छूट का यह मतलब नहीं है कि कर्जदारों से अधिक ब्याज वसूला जाए। जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से पूछा है कि क्या 6 महीने के लिए लोन पर मोहलत से भुगतान के दौरान ब्याज पर ब्याज लगेगा।
पीठ ने वित्त मंत्रालय और आरबीआई के अधिकारियों को तीन दिनों के भीतर बैठक कर कर्ज अदायगी में स्थगन की अवधि के लिए ब्याज पर ब्याज के मसले को निपटाने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई बुधवार को करेगा।
पीठ ने कहा कि अगर मूलधन और ब्याज के भुगतान को स्थगित किया गया है तो बैंक ब्याज पर ब्याज नहीं जोड़ सकते। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि वित्त मंत्रालय और आरबीआई के बीच इस सप्ताह के अंत में बैठक होगी। पीठ ने कहा, हम संतुलन बना रहे हैं।
इस अदालती कार्यवाही करने का हमारा मतलब सिर्फ इतना है छह महीने के लिए जो ईएमआई में छूट प्रदान की गई है, क्या बाद में इसे देय शुल्कों से जोड़ दिया जाएगा। क्या ब्याज पर ब्याज लिया जाएगा या नहीं? शीर्ष अदालत गजेंद्र सिंह की याचिका पर सुनवाई कर रही है।
बैंकों ने कहा, छह महीने का ब्याज माफ नहीं कर सकते
इस मामले में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सभी बैंकों का यह मानना है कि छह महीने के ब्याज को माफ नहीं किया जा सकता। इससे पहले आरबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि ऋण अदायगी पर स्थगन देने के निर्णय केवल भुगतान दायित्वों को स्थगित करना है, इसे छूट समझने की भूल नही की जानी चाहिए।
आरबीआई ने भी ब्याज में माफी देने से किया था इनकार
आरबीआई ने ऋण स्थगन की अवधि पर ब्याज में माफी देने से इनकार किया था। उसका कहना है कि ऐसा करना बैंकों की वित्तीय व्यवहार्यता को जोखिम में डालना होगा और साथ ही इससे जमाकर्ताओं का हित भी खतरे में पड़ जाएगा। इतना ही नहीं आरबीआई ने यह भी कहा था कि इससे बैंकों को दो लाख करोड़ रुपये (जीडीपी का 1 फीसदी) तक नुकसान होगा। मालूम हो कि 27 मार्च को आरबीआई ने सर्कुलर जारी कर ईएमआई में तीन महीने के लिए छूट दी थी और बाद में यह छूट और तीन महीने और बढ़ा दी गई थी।