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भारत के कई जोन में सामुदायिक स्तर पर संक्रमण: रिपोर्ट

देश के चिकित्सा विशेषज्ञों की एक अहम रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत के कई जोन में अब कोरोना का सामुदायिक संक्रमण (कम्युनिटी ट्रांसमिशन) हो रहा है। इस कारण यह उम्मीद करना अवास्तविक है कि इस स्तर पर महामारी को समाप्त किया जा सकता है। यह रिपोर्ट टास्कफोर्स समिति द्वारा तैयार की गई है, जिसमें एम्स के डॉक्टरों के अलावा आईसीएमआर के दो सदस्य भी शामिल रहे। महामारी की स्थिति पर तैयार इस रिपोर्ट को प्रधानमंत्री को सौंपा गया है।

इस रिपोर्ट को संयुक्त रूप से तीन नामी संस्थाएं, इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन, इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन और इंडियन एसोसिएशन ऑफ एपिडेमियोलॉजिस्ट के विशेषज्ञों ने संकलित किया है। रिपोर्ट में लिखा है कि देश में बड़ी आबादी वाले वर्गों में सामुदायिक संक्रमण पहले से पूरी तरह स्थापित है। गौरतलब है कि सरकार अब तक यह कह रही है कि कोरोना बीमारी कम्युनिटी ट्रांसमिशन के स्तर तक नहीं पहुंच पाई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘इस कड़े राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन से अपेक्षा थी कि बीमारी को एक अवधि तक फैलने से रोका जा सकेगा ताकि उस विस्तृत अवधि में प्रभावी योजना बनाई जा सके, जिससे स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर अतिरिक्त भार न पड़े। ऐसा लगता है कि इस उद्देश्य को हासिल कर लिया गया लेकिन चौथे लॉकडाउन के दौरान अर्थव्यवस्था और आम जनता के जीवन को भारी नुकसान पहुंचा।’

16 सदस्यीय संयुक्त कोविड टास्क फोर्स में डॉ. शशि कांत शामिल हैं जो दिल्ली एम्स के सेंटर फॉर कम्युनिटी मेडिसिन के प्रमुख हैं। इसके अलावा इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन के डॉ. संजय के राय, बीएचयू के कम्युनिटी मेडिसिन के प्रमुख डॉ. डीसीएस रेड्डी, पीजीआई चंड़ीगढ़ के डीसीएम प्रमुख डॉ. राजेश कुमार शामिल हैं। डॉ. रेड्डी और डॉ. कांत आईसीएमआर के महामारी विज्ञान और निगरानी अनुसंधान समूह के सदस्य भी हैं। विशेषज्ञों ने रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि 25 मार्च से 31 मई तक चला राष्ट्रव्यापी बंद सबसे कठोर था फिर भी इस चरण में कोविड के मामलों में तेज वृद्धि हुई जो 25 मार्च को 606 से बढ़कर 24 मई को 1,38,845 हो गए।

महामारी विशेषज्ञों की सलाह से बेहतर परिणाम मिलते
रिपोर्ट में कहा गया कि वायरस ट्रांसमिशन की बेहतर समझ रखने वाले महामारी विशेषज्ञों से सलाह ली गई होती तो शायद बेहतर होता। सार्वजनिक डोमेन में सीमित जानकारी उपलब्ध है लेकिन ऐसा लगता है कि ऐसे चिकित्सक व अकादमिक महामारी विज्ञानियों से सलाह ली गई जिनकी फील्ड ट्रेनिंग व कौशल सीमित है। रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि ऐसा प्रतीत होता है कि नीति निर्माताओं ने सामान्य प्रशासनिक नौकरशाहों पर अत्यधिक भरोसा किया। उनका संपर्क महामारी विज्ञान, सार्वजनिक स्वास्थ्य, निवारक चिकित्सा और सामाजिक वैज्ञानिकों से सीमित था।

हालात के हिसाब से कदम उठाए 
विशेषज्ञों ने रिपोर्ट में माना है कि यह बीमारी फैलने व मानवीय संकट पैदा होने से भारत भारी कीमत चुका रहा है। रिपोर्ट में लिखा है कि नीति निर्माताओं ने महामारी विज्ञान के आधार पर सोच-समझकर नीति बनाने की जगह हालात के हिसाब से प्रतिक्रिया रूप में कदम उठाए, उनकी नीतियां असंगत थीं।

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