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लॉकडाउन के दिनों में परिवार के तीनों स्तम्भों में आ रहा है असामान्य परिवर्तन

लॉकडाउन के 40 दिन में ही समाज में बदलाव की जो शुरुआत हुई है वह सामाजिक खतरे की आहट भी है। इन दिनों परिवार के तीनों स्तंभ पति, पत्नी और बच्चे के व्यवहार में असामान्य परिवर्तन दिखने लगा है। कोई चिड़चिड़ा हो रहा है तो कोई जिद्दी। बच्चों के व्यवहार में भी उदंडता झलकने लगी है।

मनोवज्ञानिकों के पास आए फोन में से 60 फीसदी कॉल कामकाजी पति के अवसाद से संबंधित है। वहीं 20% फोन महिलाओं और बच्चों के व्यवहार में बदलाव से संबंधित है। इस समस्या के निदान के लिए परिवार के सदस्य मनोवैज्ञानिकों की मदद ले रहे हैं।

लॉकडाउन लागू होने के बाद तीस मार्च को इंडियन एसोसिएशन ऑफ क्लीनिकल साइकॉलजिस्ट ने अपनी अधिकृत वेबसाइटपर पंजीकृत साइकोलॉजिस्ट की एक सूची जारी की थी। इस पैनल में शामिल आजमगढ़ की अग्रसेन महिला पीजी कालेज की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर अनुभा श्रीवास्तव के पास 40 दिनों में 500 से अधिक फोन आए। इसमें से 60 फीसदी फोन पतियों के बदले व्यवहार, उनकी अनुचित मांग से होने वाली परेशानी से संबंधित थी। डा श्रीवास्तव ने बताया कि पत्नियां अपने पति के बदले व्यवहार से न सिर्फ परेशान है बल्कि खतरे को भांप कर चिंतित भी हैं। 60 फीसदी महिलाओं में से 50 फीसदी ने इस व्यवहार के कारण हो रहे घरेलू हिंसा की बात स्वीकार कीं।

नशेड़ी पतियों से ज्यादा परेशानी : उन पतियों के व्यवहार में ज्यादा बदलाव और आक्रोश दिखा जो किसी न किसी तरह का नशा करते हैं। वहीं आर्थिक रूप से परेशान पतियों के व्यवहार में भी बदलाव नजर आया है।

आर्थिक संकट से पतियों में बढ़ रही है झुंझलाहट

मनोवैज्ञानिक बता रहे हैं कि आर्थिक संकट से पतियों में झुंझलाहट, नशा नहीं मिलने से आक्रोशित व्यवहार, बच्चों और पत्नी के प्रति गुस्सा करने की बात सामने आ रही हैं। 40 दिन से लगातार घर में बैठने से कई परिवारों के सामने आर्थिक संकट भी खड़ा हो गया है।

20 फीसदी पत्नियों के व्यवहार भी बदले

पैनल में शामिल मनोवैज्ञानिकों के पास प्रतिदिन आने वाले फोन में से करीब 20 फीसदी पत्नियों के बदलते व्यवहार से भी संबंधित है। चिड़चिड़ापन, बच्चों की बेवजह पिटाई और छोटी सी बात को तूल देने जैसे नई आदतें महिलाओं के व्यवहार में दिख रही हैं।

लंबे लॉकडाउन में घर में बैठे बैठे पति अवसाद के शिकार हो रहे हैं। वहीं पत्नियां भी घरेलू हिंसा की शिकार हो रही हैं। यह समाज की परिवारिक ईकाई के लिए खतरनाक है।

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