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ट्रस्ट को व्यापक रूप देकर सरकार सामाजिक सद्भाव और सौहार्द का नया संदेश देना चाहती है : अयोध्या

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए बनाए जाने वाले ट्रस्ट को व्यापक रूप देकर सरकार सामाजिक सद्भाव और सौहार्द का नया संदेश देना चाहती है। ट्रस्ट में देशभर के प्रमुख संतों के साथ दक्षिण भारत का भी खास प्रतिनिधित्व होगा। हालांकि विश्व हिंदू परिषद इसे धार्मिक व्यवस्थाओं के अनुरूप चाहती है। वह इसमें सरकारी हस्तक्षेप नहीं चाहती है। उसका मानना है कि ट्रस्ट में वैष्णव हिंदुओं को ही रखा जाए और रामजन्मभूमि न्यास के मंदिर के नक्शे के मुताबिक ही निर्माण किया जाए। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल द्वारा रविवार को बुलाई सभी धर्मगुरुओं के साथ बैठक को ट्रस्ट निर्माण दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसमें सरकार ने फैसले को लेकर विभिन्न धर्मगुरुओं की राय हासिल की।

सरकार चाहती है कि वह उच्चतम न्यायालय के आदेश के मद्देनजर फैसले को लेकर देश में जिस तरह का सद्भाव दिखा, वह आने वाले समय में बना रहे। सूत्रों के अनुसार भावी ट्रस्ट में राम जन्मभूमि न्यास से कुछ लोगों को ही लिया जाएगा। सरकार की कोशिश ट्रस्ट को ऐसा स्वरूप देने की है, जिसमें राष्ट्र एकजुट दिखे और राम मंदिर धार्मिक मुद्दों से ऊपर राष्ट्रमंदिर के रूप में सामने आए। ऐसे में उत्तर भारत के प्रमुख संतों के साथ दक्षिण के प्रमुख संत कांची कामकोटि मठ के शंकराचार्य, उडुपी मठ के स्वामी आदि को शामिल किया जा सकता है। श्री श्री रविशंकर, बाबा रामदेव जैसे विशिष्ट लोगों को शामिल करने पर भी विचार किया जा सकता है।

विहिप ट्रस्ट में आंदोलन से जुड़े संतों के पक्ष में 

हालांकि विश्व हिंदू परिषद इस तरह की कोशिशों के पक्ष में नहीं है। विहिप से वरिष्ठ नेता चंपत राय का कहना है कि ट्रस्ट गठन सरकार को करना है, लेकिन अयोध्या वैष्णव संप्रदाय की अनुगामी है इसलिए इसमें उन लोगों को ही रखा जाए जो वैष्णव, रामनंदाचार्य की परंपरा और ईश्वर के सगुण रूप को मानते हों और मंदिर निर्माण आंदोलन से जुड़े भी रहे हों।

निगुर्ण रूप के मानने वालों व गैर हिंदुओं को इसमें ना रखा जाए। ऐसे लोगों को शामिल करने से नया विवाद खड़ा हो सकता है। उन्होंने कहा कि शंकराचार्य और शैव मतावलंबी पर कोई मतभेद नहीं है वे हिंदू सगुण परंपरा के हिस्सा हैं। विहिप का यह भी मानना है कि इसमें कोई वंश परंपरा न हो। पुजारियों की परंपरा बद्रीनारायण मंदिर की तरह हो। किसी एक परिवार का अधिकार ना हो। ट्रस्ट में सरकार का कोई औचित्य नहीं है अलबत्ता प्रशासनिक अधिकारी पदेन हो सकते हैं।

भाजपा को मिलेगा दक्षिण में लाभ

मंदिर निर्माण का राजनीतिक लाभ भाजपा को मिलेगा। मंदिर आंदोलन का दक्षिण भारत में भी काफी प्रभाव रहा। खासकर कर्नाटक में जहां भाजपा की राजनीतिक जमीन को मजबूती देने में इस आंदोलन का अहम स्थान रहा। अब भाजपा इसे तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में भी पहुंचाना चाहती है। तमिलनाडु में सशक्त क्षेत्रीय नेतृत्व के अभाव में लगभग डेढ़ साल बाद होने वाले चुनाव में भाजपा के लिए जमीन बन सकती है, वहीं केरल में वह व्यापक हिंदू समर्थन भी हासिल कर सकती है।

सरकार में ट्रस्ट के लिए हलचल शुरू

केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार राम जन्मभूमि मामले में मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट के गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी है और कुछ अधिकारियों की टीम अदालत के फैसले का विस्तृत अध्ययन कर रही है। न्यास के गठन पर विधि मंत्रालय और अटॉर्नी जनरल की राय ली जाएगी। यह ट्रस्ट ही अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की रूपरेखा तैयार करेगा। एक अन्य अधिकारी के मुताबिक अभी यह साफ नहीं हो पाया है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए बनाए गए ट्रस्ट की नोडल इकाई गृह मंत्रालय या संस्कृति मंत्रालय होगा।

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