कंपनियों की कमाई घटने का असर उनके कर्मचारियों के वेतन पर पड़ने लगा है। देश के निजी क्षेत्र में कर्मचारियों का वेतन वित्त वर्ष 2018-19 में पिछले दस साल में सबसे कम बढ़ा है। साथ ही सात साल में यह पहली बार है जब राजस्व में वेतन का अनुपात भी घटा है।
एचटी द्वारा प्रॉविस डाटाबेस के विश्लेषण में यह बात सामने आई है। इस डाटाबेस को सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) ने तैयार किया है।
एक फीसदी से भी कम बढ़ा वेतन : इस डाटाबेस में 4953 कंपनियों को शामिल किया गया। आंकड़ों में यह बात सामने आई कि 2018-19 में वेतन में औसत बढ़ोत्तरी छह फीसदी हुई। लेकिन महंगाई सूचकांक के आधार पर वास्तविक बढ़ोतरी सिर्फ 0.53 फीसदी हुई। इस अवधि में कंपनियों के राजस्व में औसतन नौ फीसदी का इजाफा हुआ। महंगाई सूचकांक के आधार पर इसका आकलन करने पर राजस्व में वास्विक बढ़ोत्तरी महज तीन फीसदी रही।
नोटबंदी के वक्त भी इतना बुरा हाल नहीं
नवंबर 2016 में नोटबंदी की घोषणा हुई थी। आंकड़ों के मुताबिक वेतन बढ़ोत्तरी को लेकर उस समय भी हालात मौजूदा समय से बेहतर थे। नोटबंदी के समय वित्त वर्ष 2016-17 में निजी क्षेत्र में कर्मचारियों के वेतन में 2.7 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई थी। वहीं उसके अगले साल वित्त वर्ष 2017-18 में 8.4 फीसदी बढ़ोत्तरी हुई।.
बेरोजगारी बड़ी वजह
आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि राजस्व घटने से कंपनियां अपने खर्च में कटौती के लिए मजबूर हैं। इसका सीधा असर कर्मचारियों के वेतन पर पड़ रहा है। वहीं, बढ़ती बेरोजगारी ने भी कर्मचारियों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। बेरोजगारी की वजह से लोग कम वेतन पर काम करने को मजबूर हैं। ऐसे में मौजूदा कर्मचारी वेतन बढ़ाने के लिए मोलभाव करने की स्थिति में भी नहीं रह गए हैं।
मंदी के संकेत
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस पॉलिसी के प्रोफेसर एनआर भानुमूर्ति का कहना है कि अर्थव्यवस्था में सुस्ती के संकेत काफी पहले से मिल रहे थे जिसे सरकार ने अब जाकर स्वीकार किया है। उनका कहना है कि वर्ष 2016 में नोटबंदी से सुस्ती की शुरुआत हुई और वर्ष 2017 में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू कर इसे और बढ़ा दिया गया।