जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने की रणनीति पर भाजपा लंबे समय से काम कर रही थी। अमित शाह ने गृहमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद से ही इस योजना पर काम शुरू कर दिया गया था। इसकी जानकारी शाह के अलावा पीएम नरेंद्र मोदी और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के चुनिंदा शीर्ष अधिकारी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत दोभाल और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के अलावा शायद ही किसी को थी।
उच्चपदस्थ सूत्रों के मुताबिक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक को इसकी पूरी जानकारी तब हुई जब पिछले हफ्ते अजीत दोभाल ने कश्मीर का गुप्त दौरा किया। जब 2014 लोकसभा चुनाव से भी बड़े बहुमत से केंद्र में फिर से मोदी सरकार बनी तो प्रधानमंत्री ने शपथग्रहण वाले दिन राष्ट्रपति भवन में ही राजनाथ सिंह से कश्मीर में कुछ नया करने की रणनीति को लेकर बातचीत की थी।
सूत्र बताते हैं कि अनुच्छेद 370 में फेरबदल का यह बिल इस साल फरवरी में ही लाने की योजना थी, लेकिन पुलवामा हमले के कारण इसे टालना पड़ा। फिर चुनाव बाद शाह गृहमंत्री बने तो तय हुआ कि 370 हटाने के कानूनी और राजनीतिक पहलुओं का खाका बनाया जाए। गृहमंत्री अमित शाह और एनएसए अजीत डोभाल के कश्मीर दौरे के बाद इसमें तेजी आई।
अमित शाह ने कानूनी पहलुओं के नजरिये से अलग कानूनन क्या-क्या विकल्प हो सकते हैं, इसकी तलाश की। राज्यसभा में आंकड़े जुटाने के लिए फ्लोर प्रबंधन समूह बनाया गया। इस समूह में जिन मंत्रियों को शामिल किया गया, उन्हें भी नहीं बताया गया कि कि किस बिल के लिए उन्हें समर्थन जुटाना है।
वो जिन दलों से बात कर रहे थे, उनको बस ये कहना था कि देश के लिए जरूरी बिल आना है। भाजपा सांसदों के लिए भी संसद सत्र के चलने तक बाकायदा तीन लाइन का व्हिप जारी किया जाता रहा, जैसा कि ट्रिपल तलाक बिल के समय भी किया गया था। आखिरकार पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का यह मास्टरस्ट्रोक काम आया और सरकार को बड़ी कामयाबी मिली।