अगर ऐसा होता है तो उन्हें सदन से निलंबित या फिर निष्कासित किया जा सकता है। इसी कानून के कारण साल 1978 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को विशेषाधितार हनन से जुड़े मामले में लोकसभा से निष्कासित कर जेल भेज दिया गया था। चलिए जानते हैं क्या हैं विशेषाधिकार से जुड़े नियम।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबित आजम खान की टिप्पणी सदन की अवमानना और विशेषाधिकार के हनन का मामला बनता है। अगर ऐसे मामलों पर शमा मांग ली जाती है तो मामला यहीं खत्म हो जाता है। लेकिन अगर ऐसा नहीं किया जाता तो सदन कार्रवाई करने का फैसला कर सकता है, या फिर इस मामले को विशेषाधिकार समिति को भेज सकता है। अगर ऐसा होता है तो समिति सांसद के बारे में फैसला करती है और साथ ही उस फैसले से सदन को भी अवगत कराती है। फिर सदन समिति के निर्णय पर मुहर लगाता है। अगर कोई विशेषाधिकार के हनन का दोषी पाया जाता है तो उस सांसद को निलंबित किया जा सकता है और साथ ही सदन से बहिष्कृत भी किया जा सकता है।
क्या हुआ था इंदिरा गांधी के साथ?
क्या है विशेषाधिकार हनन?
दंड का प्रावधान
क्या है प्रस्ताव की प्रक्रिया
- सदन का कोई भी सदस्य अध्यक्ष की अनुमति से किसी दूसरे सदस्य के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव ला सकता है। जो सदस्य विशेषाधिकार का प्रश्न उठाता है, उसे उसकी लिखित सूचना लोकसभा महासचिव को देनी होती है।
- अब लोकसभा अध्यक्ष पर निर्भर करता है कि वह इसकी अनुमति देंगे या नहीं। अगर उन्हें प्रस्ताव नियमों के तहत नहीं लगता, तो वो इसे खारिज कर सकते हैं। अगर अनुकूल लगता है तो अनुमति दे सकते हैं।
- अब इसपर आपत्ति आती है। जिसके लिए सदन में कम से कम 25 सदस्यों को खड़े होकर आपत्ति जतानी होती है। ऐसा ना होने पर प्रस्ताव को जांच पड़ताल के लिए विशेषाधिकार समिति को भेज दिया जाता है।
- लोकसभा की विशेषाधिकार समिति में 15 सदस्य होते हैं और इसका अध्यक्ष सत्ताधारी पार्टी का सांसद होता है। हालांकि समिति में सभी पार्टियों के सांसद शामिल होते हैं। इस समिति का काम प्रस्ताव की जांच पड़ताल करना होता है।
- जांच पड़ताल के बाद समिति अपनी सिफारिशें देती है और सिफारिशों पर सदन में बहस भी होती है।