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हर मर्ज की दवा बन गई है डाइट

किसने सोचा था कि विश्वयुद्ध या आदिमानव के समय प्रचलित डाइट एक दिन हमारी थाली का भी हिस्सा बनेगी। आज हर तीन में से एक व्यक्ति सही डाइट प्लान की तलाश में विशेषज्ञों, एप और वेबसाइट की शरण में जा रहा है। इन दिनों प्रचलित विभिन्न प्रकार की डाइट के बारे में बता रही हैं सीनियर न्यूट्रिशनिस्ट शिप्रा माथुर

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूनान, स्पेन और इटली में एक खास किस्म का आहार यानी डाइट बेहद लोकप्रिय हुआ। यह डाइट उस राशन से तैयार की गई थी, जो युद्ध के हालात में उपलब्ध था। उस वक्त शायद किसी ने नहीं सोचा होगा कि आगे चलकर किसी दिन यह दुनिया की सर्वश्रेष्ठ डाइट बन कर उभरेगी। लेकिन ऐसा ही हुआ।  ‘यूएस न्यूज एंड वर्ल्ड रिपोर्ट’ की सालाना ‘बेस्ट डाइट रैंकिंग’ में  मेडिटरेनियन डाइट ने इस साल पहला स्थान हासिल किया। उसने पिछले आठ साल से पहले स्थान पर लगातार काबिज डैश (डाएटरी एप्रोचेज टु स्टॉप हायपरटेंशन) डाइट को पछाड़कर ‘सर्वश्रेष्ठ आहार’ का खिताब अपने नाम किया।

शोध कहते हैं कि मेडिटरेनियन डाइट लगातार लेने से उम्र तो लंबी होती ही है, और भी कई फायदे होते हैं। शायद तभी इसने ‘अमल करने में सबसे आसान’, ‘सबसे स्वास्थ्यवर्धक’ और ‘डायबिटीज वाले लोगों के लिए सर्वश्रेष्ठ डाइट’ जैसे खिताब भी अपने नाम किए।

भारत में मेडिटरेनियन डाइट का देसी संस्करण ज्यादा लोकप्रिय है। बीते कुछ सालों से भारत में अलग-अलग तरह की डाइट चर्चित हो रही हैं। इसके कई कारण हैं। पहला तो यह कि वजन घटाने या बढ़ाने और डायबिटीज पर नियंत्रण पाने से लेकर मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने तक के लिए बाजार में आजकल कोई न कोई विशेष आहार योजना उपलब्ध है। बस जरूरत है तो अपने लिए मुफीद आहार पहचानने की। दूसरा यह कि भारतीय लोगों की आहार शैली में कई कमियां हैं, जैसे मैदा और सफेद चावल अधिक मात्रा में खाना, पर्याप्त फल-सब्जियां न खाना, सब्जियों को जरूरत से ज्यादा पकाना, नियमित रूप से परिष्कृत आहार लेना आदि।

भारतीय आहार में औसतन 70 प्रतिशत हिस्सेदारी कार्बोहाइड्रेट की है। भारत के लोग अमेरिकियों जितना जंक फूड नहीं खाते, लेकिन उनके खानपान में प्रोटीन और फाइबर की कमी है। ऐसी ही तमाम वजहें भारत में विभिन्न प्रकार की डाइट की लोकप्रियता का सबब बनीं। तो चलिए, जानते हैं कुछ ऐसी डाइट के बारे में, जो भारत में तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं।

कीटोजेनिक डाइट 
इस प्रकार की डाइट लेने वालों को  कार्बोहाइड्रेट अर्थात कार्ब्स का सेवन कम करना और वसा का सेवन कुछ बढ़ाना होता है। सुनने में भले ही यह अजीब लग रहा हो, पर करीब 20 अध्ययनों में साबित हुआ है कि यह डाइट वजन कम करने के लिए बेहद प्रभावी है। कीटो आहार का लक्ष्य कार्ब्स को इतना कम रखना है कि शरीर  चयापचय (मेटाबॉलिज्म) की केटोसिस अवस्था में चला जाए। इस अवस्था में, शरीर में इंसुलिन का स्तर कम हो जाता है, जिससे वह अपने वसा भंडार से बड़ी मात्रा में फैटी एसिड छोड़ता है। इस डाइट में स्वस्थ वसायुक्त खाद्य पदार्थ, जैसे नारियल, बीज, मछली, जैतून का तेल, एवोकैडो आदि आहार में प्रमुखता से शामिल किए जाते हैं।

माइंड डाइट 
माइंड से यहां मतलब है, मेडिटरेनियन डैश इंटरवेंशन फॉर न्यूरोजेनेरेटिव डिले। इस प्रकार के आहार का उद्देश्य डिमेंशिया समेत मस्तिष्क के स्वास्थ्य में आ रही कई तरह की गिरावटों को कम करना है। यह डाइट उम्र बढ़ने के साथ घटती मानसिक क्षमताओं को बढ़ाने में कारगर है। यह दरअसल मेडिटरेनियन और डैश डाइट के तत्वों का मिश्रण है। इसमें साबुत अनाज, हरी पत्तेदार सब्जियां, मछली, चिकन, बींस, मेवा, जैतून का तेल, मक्खन, चीज, पनीर आदि शामिल हैं।

पैलियो डाइट 
पैलियो या केवमैन डाइट पैलियोलिथिक अर्थात पुरापाषाण युग (आज से करीब 25 लाख साल पहले से लेकर 12 हजार साल पहले तक का समय) में रहे खाद्य पदार्थों पर आधारित है।इसमें आमतौर पर ऐसे खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं, जो आदि मानव शिकार के दौरान इकट्ठा करते थे। देखा जाए तो इस आहार में वे खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं, जो खेती शुरू होने से पहले उपलब्ध थे। इनमें मांस, मछली, अंडे, सब्जियां, फल, कंद-मूल, बीज, जड़ी-बूटियां, मसाले, स्वस्थ वसा और तेल जैसी चीजें शामिल हैं। इस आहार में प्रसंस्कारित खाद्य, चीनी, ठंडे पेय, अनाज, डेयरी उत्पाद और ट्रांस वसा शामिल नहीं किए जाते हैं।

डैश डाइट 
यह डाइट उच्च रक्तचाप को काबू करने में मददगार है। इसमें सोडियम की मात्रा कम रखी जाती है और रक्तचाप को कम करने वाले पोटैशियम-कैल्शियम-मैग्नीशियम जैसे तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ शामिल किए जाते हैं। इस  आहार के नियमित सेवन से केवल दो हफ्तों में उच्च रक्तचाप नियंत्रित हो सकता है। यह ऑस्टियोपोरोसिस, कैंसर, हृदय रोग, स्ट्रोक और डायबिटीज जैसे रोगों से पीड़ित लोगों के लिए भी फायदेमंद है।

एटकिंस डाइट 
इस डाइट का उद्देश्य वजन कम करना और उसे कायम रखना है। साथ ही आपकी खाने की आदतों को बदलना भी है। एटकिंस आहार योजना के तहत आपको प्रोटीन और वसा लेते हुए अपना वजन घटाना होता है। हालांकि इसमें कार्बोहाइड्रेट से परहेज करना होता है। इसे अपनाने से शरीर में ऊर्जा का स्तर पूरे दिन लगातार ऊंचा बना रहता है।

वेट वॉचर्स डाइट 
यह दुनिया की सबसे लोकप्रिय डाइट में से एक है। मशहूर अंतरराष्ट्रीय सेलेब्रिटी ओपरा विनफ्रे ने भी इस डाइट प्लान को अपनाया था। यह डाइट एक विशेष ‘स्मार्ट पॉइंट सिस्टम’ पर आधारित है, जिसमें खाने-पीने की प्रत्येक चीज की पोषक गुणवत्ता के आधार पर उसकी एक ‘पॉइंट वैल्यू’ निर्धारित होती है। उस पॉइंट वैल्यू को देखते हुए ही आहार में उस चीज की कम या अधिक मात्रा तय की जाती है।

लो ग्लाइसीमिक डाइट 
ब्रेड, चीनी, फलों, सब्जियों और डेयरी उत्पादों में कार्बोहाइड्रेट अलग-अलग मात्रा में मौजूद होते हैं। ये एक स्वस्थ डाइट का अहम हिस्सा हैं, पर हर कार्बोहाइड्रेट हमारे रक्त में शुगर के स्तर को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करता है। ग्लाइसीमिक इंडेक्स यानी जीआई एक ऐसा पैमाना है, जो खाद्य पदार्थों को हमारे रक्त में शुगर के स्तर को प्रभावित करने की उनकी क्षमता के आधार पर आंकता है। लो ग्लाइसीमिक डाइट इसी जीआई  पर आधारित डाइट है । इसमें हर खाद्य पदार्थ की ‘जी आई रेटिंग’ होती है। इस डाइट को अपनाने  वालों को कोशिश करनी होती है कि वे कम से कम जीआई रेटिंग वाले खाद्य पदार्थों को ही अपने आहार में शामिल करें, क्योंकि ये पचाने में आसान होते हैं।

लो ग्लाइसीमिक डाइट से जुड़े खास सिद्धांत
केले, आम और पपीते जैसे फलों की जीआई रेटिंग कम होती है। इन्हें खाना फायदेमंद है। प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थ भरपूर मात्रा में खाएं।
रोज तीन बार खाना खाएं। एक या दो बार स्नैक्स लें। सुबह का नाश्ता न छोड़ें। धीरे-धीरे खाएं और पेट भरते ही खाना बंद कर दें।

साउथ बीच डाइट 
यह डाइट बस दस साल पुरानी है। दक्षिणी समुद्र तटीय आहार की शुरुआत अमेरिकी कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. आर्थर एगैटस्टोन और पोषण विशेषज्ञ मैरी अलमन ने की थी। यह इंसुलिन के स्तर के नियंत्रण पर आधारित है। इसमें तीन चरण होते हैं- दो वजन घटाने के लिए और एक घटे हुए वजन को कायम रखने के लिए। इसमें सब्जियां, मछली, अंडे, विभिन्न डेयरी उत्पाद, चिकन, साबुत अनाज और मेवे शामिल रहते हैं। यह डाइट दिल को सेहतमंद बनाए रखने में कारगर है और बिना भूखा रहे वजन घटाने में भी मदद करती है।

कुछ भ्रांतियां भी हैं 
किसी खाद्य उत्पाद के लेबल पर ‘नो फैट’ या ‘लो फैट’ लिखा होने का मतलब यह हरगिज नहीं है कि आप उसे कितनी भी मात्रा में खा लें और आपका वजन नहीं बढ़ेगा। दरअसल ऐसे लेबल वाले उत्पादों में अकसर अतिरिक्त चीनी, स्टार्च या नमक होता है। ये कैलरी बढ़ाते हैं।

बहुत से लोग सोचते हैं कि यदि कोई व्यक्ति मोटा है, तो यकीनन उसका स्वास्थ्य खराब है। पर हकीकत में ऐसे बहुत लोग होते हैं, जिनका वजन ज्यादा होने पर भी ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल का स्तर सामान्य होता है। जबकि किसी दुबले व्यक्ति के ब्लड शुगर का स्तर गड़बड़ हो सकता है।

यह भी भ्रांति है कि भूखे रहने से वजन कम हो जाता है। असलियत यह है कि लंबे समय तक भूखे रहने के बाद आपको तेज भूख लगती है, तब  ज्यादा खाना खाने से वजन और तेजी से बढ़ता है।

दि जोन डाइट
इस डाइट को शरीर की सूजन कम करने के लिए विकसित किया गया था। इसे विकसित करने वाले डॉ. बैरी सीयर्स कहते हैं,‘सूजन लोगों का वजन बढ़ने और जल्दी बुढ़ापा आने की एक बड़ी वजह है। सूजन कई बीमारियों को भी न्योता देती है। सूजन कम करते ही इन बीमारियों से निजात पाई जा सकती है।’ इस आहार में 40 प्रतिशत काब्र्स, 30 प्रतिशत प्रोटीन और 30 प्रतिशत वसा रखने का प्रावधान है। इसे बेहद लचीला डाइट प्लान माना जाता है।

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