सावन महीने की पूर्णिमा तिथि पर यानी 3 अगस्त सोमवार के दिन रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाएगा। रक्षाबंधन भाई और बहन के बीच स्नेह का त्योहार है। जिसमें बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती है। इस बार रक्षाबंधन पर भद्रा का साया ज्यादा देर के लिए नहीं रहेगा। 3 अगस्त को सुबह 9 बजकर 29 मिनट तक भद्रा रहेगी। भद्रा की समाप्ति के बाद पूरे दिन राखी बांधी जा सकती है। वहीं अगर 3 अगस्त के नक्षत्र की बात करे तो सुबह 7. 30 मिनट के बाद श्रावण नक्षत्र लग जाएगा।
रक्षाबंधन योग
वहीं अगर रक्षाबंधन पर बने योग की बात करें तो इस दिन गुरु अपनी राशि धनु में और शनि मकर में वक्री की चाल में रहेगा। वहीं चंद्रमा हर ढाई दिन में अपनी राशि बदलता है। रक्षाबंधन पर चंद्रमा शनि के साथ मकर राशि में रहेगा।
रक्षाबंधन पूजन विधि
सबसे पहले रक्षाबंधन के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। फिर पूजाघर में भगवान की पूजा और आरती करें। पूजा के बाद रक्षाबंधन की थाली को तैयार करें जिसमें राखी, चंदन, चावल, मिठाई, दीया और फूल रखें। थाली को सजाने के बाद अपने इष्टदेव को राखी बांधें। फिर सभी भगवान की आरती और भोग लगाकर आरती करें। बाद में भाई को पूर्व की दिशा में मुंह करके बैठाकर दाहिने हाथ की कलाई में रक्षा सूत्र बांधे और आरती उतारें। अंत में मिठाई खिलाएं।
राहुकाल में न बांधे राखी
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राहुकाल में किसी भी तरह का शुभ कार्य नहीं किया जाता है। ऐसे में रक्षाबंधन के दिन राहुकाल पर विशेष सावधानी बरतें।
राहुकाल ( 03 अगस्त 2020) – सुबह 7:30 से 9:00 बजे तक
राखी बांधने का मुहूर्त :
09:30 मिनट से 21:11 मिनट तक
अवधि : 11 घंटे 43 मिनट
पुराणों में रक्षाबंधन
पुराणों के अनुसार एक समय की बात है एक बार देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हो गया था। यह युद्ध कई वर्षों तक चलता रहा। इस युद्ध में असुरों ने देवताओं को परस्त कर दिया था। असुरों ने इंद्र को हराकर तीनों लोकों में अपनी विजय पताका फहरा दिया था। असुरों से हराने के बाद समस्त देवी-देवता सलाह मांगने के लिए देवगुरु बृहस्पति के पास गए। तब बृहस्पति ने मंत्रोच्चारण के साथ रक्षा संकल्प विधान करने की सलाह दी। देवगुरु के निर्देशानुसार सभी देवताओं नें रक्षा विधान का आयोजन किया। यह रक्षा विधान श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि पर आरंभ किया गया। रक्षा विधान में सभी देवताओं ने मिलकर एक रक्षा कवच को सिद्ध कर इंद्र की पत्नी इंद्राणी को सौंप दिया और इसे देवराज इंद्र के दाहिने हाथ में बांधने के लिए कहा। इसके बाद इंद्राणी ने देवराज की कलाई में रक्षा कवच सूत्र को बांध दिया। इसकी ताकत से इंद्र ने पुन: असुरों से युद्ध कर उन्हें परास्त कर दिया और अपना खोया हुआ राजपाठ वापस हासिल कर लिया। तभी से हर वर्ष सावन महीने की पूर्णिमा तिथि पर रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाने लगा।